आत्मा कहाँ है?
भ्रम वाली बात ये है कि आप आत्मा नहीं बोलते हो, आप ‘मेरी आत्मा’ बोलते हो, और ‘मेरी’ से आपका मतलब होता है: मेरा शरीर; आपने आत्मा को भी शरीर के अन्दर बैठा दिया है।
‘आपकी’ समझ थोड़ी ही है, जैसे चेतना आपकी नहीं होती, वैसे ही समझ भी आपकी नहीं होती है।
जब तक समझ ‘आपकी’ है, तब तक वो सिर्फ़ आपकी मान्यता है, मत है, वो ‘समझ’ नहीं है। समझ अव्यक्तिक होती है, ‘आपकी’ नहीं होती है। धर्म के इतिहास में सबसे बड़ी भूल यही हुई है कि…