आत्मा: कई सवाल
प्रश्नकर्ता: नमस्कार सर! यह आत्मा क्या है? आप क्यों कहते हैं कि आत्मा ना आती है, ना जाती है, ना देखती है, ना सुनती है?
आचार्य प्रशांत: वैसे तो वर्तमान में आत्मा के बहुत सारे अर्थ प्रचलित हो गए हैं, पर आत्मा का असली, मौलिक अर्थ क्या है, यह उन्हीं से पूछ लेते हैं जिन्होंने हमें आत्मा शब्द दिया — ‘आत्मा’ शब्द आता है वेदों से, ख़ासकर उपनिषदों से। तो उपनिषदों के ऋषियों ने क्यों करी आत्मा की बात? हममें से किसी के भी जीवन में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति कौन होता है? आपसे कहा जाए कि आपके जीवन में सबसे महत्वपूर्ण कौन है या क्या है, तो आप किसी व्यक्ति का नाम लेंगे, किसी चीज़ का नाम लेंगे, लेकिन थोड़ा और गहराई से देखेंगे तो पता चलेगा कि जो इंसान है या जो चीज़ आपके लिए महत्वपूर्ण है, कीमती है, वह आप ही के लिए तो महत्वपूर्ण और कीमती है न। तो वह चीज़ भी कीमत रखती है तब तक जब तक वह आपके लिए कीमती हो, तो सबसे ज़्यादा कीमती तो किसी के लिए भी वो व्यक्ति स्वयं ही हुआ न।
आप यह भी कह सकते हो कि नहीं आपको किसी से बहुत लगाव है, प्रेम है और वह व्यक्ति आपके लिए बहुत कीमती है। पर वह व्यक्ति भी कीमती है क्योंकि आप उसकी कद्र करते हो, है न? ‘आपके लिए’ कीमती है, तो सबसे महत्वपूर्ण किसी के लिए भी वह व्यक्ति स्वयं ही हुआ, ‘आत्म’, ‘मैं’। तो ऋषियों ने कहा कि ‘मैं’ है क्या पता तो करें। खोजी किस्म के आदमी थे, जिज्ञासु तबियत थी उनकी, तो पता करने लगे कि यह ‘मैं’ क्या चीज़ है, ‘मैं हूँ कौन?’ अपने बारे में जानना था उनको।
असल में उन्हें सब के बारे में जानना था, पर जैसा अभी हम कह रहे थे सब के बारे में जानने की इच्छा भी तो इस ‘मैं’ को ही उठ रही है न, तो सब के बारे में भी अगर जानना है तो सबसे पहले ‘मैं’ के बारे में, स्वयं के बारे में जानना पड़ेगा। तो उन्होंने कहा, “मैं हूँ कौन?”…