आत्महत्या क्या? शांति कैसे मिले?

प्रश्नकर्ता: सर, कोई आदमी कब सुसाइड करने के बारे में सोचने लगता है? हम लोगों के दिमाग में तो आता भी नहीं है यह ख़्याल।

आचार्य प्रशांत: यह किसके दिमाग में आया अभी-अभी?

प्र: कुछ लोग मर जाते हैं सुसाइड करके, क्यों?

आचार्य: बेटा, हर आदमी लगातार दु:ख से मुक्ति पाना चाहता है। सुसाइड का मतलब है कि किसी तरीके से मेरा कष्ट कम हो।

प्र: 20–22 साल के लड़के को कौन सा कष्ट है?

आचार्य: 12 साल की लड़के को भी हो सकता है। तुमने कभी 5 साल की लड़कें को देखा है जब वह पछाड़ मार के रोता है, और कई बार ऐसा होता है कि ऐसा रोता है कि उसकी जबान उलट जाती है। छोटे-छोटे बच्चे को देखा है, वे कैसे रो रहे होते हैं, वैसे तो बड़े नहीं रोते। सुना नहीं है रोते हुए।

जो जिस तल पर है, जिसकी जैसी मानसिकता है, उसको वहीं पर दु:ख हो जाता है। 20 साल वालों को लगता है कि अरे! 60 साल वालों को क्या दु:ख हो सकता है, 60 साल वालों को लगता है कि 20 साल वालों को क्या दु:ख हो सकता है, और यह सोचकर और हैरानी है कि 3 साल वालों को क्या दु:ख हो सकता है। पर जो जहाँ है वही दुखी है, और दु:ख से निकलने की, दु:ख को खत्म करने की सब की कोशिश है। वही कोशिश फिर आत्महत्या की शक्ल में बाहर आती है। पर जो होशियार आदमी होता है, वह कहता है कि दु:ख ही तो खत्म करना है, शरीर तो नहीं खत्म करना। क्या खत्म करना है? दु:ख। दु:ख ही तो खत्म करना है न, तो हम दु:ख खत्म करेंगे, शरीर नहीं। नहीं समझे तुम? जो होशियार आदमी होता है, वह कहता है, ‘’क्या खत्म करना है? दु:ख।’’ शरीर तो नहीं खत्म करना था, अब यह तो ऐसी बात है कि लड़ाई हमारी इससे है और मार किसको दिया? बगल वाले को। बुरा हमें क्या लग रहा था? दु:ख। और मार किसको डाला? शरीर को। यह तो बड़ी अजीब बात है। तो जो समझ नहीं पाते, वे शरीर को मारते हैं, और जो समझदार होते हैं, वे सीधे दु:ख को मारते हैं।

संत दु:ख को मारता है, संसारी शरीर को मारता है।

प्र: दु:ख मतलब क्या?

आचार्य: दु:ख मतलब वही जो हम सब लगातार अनुभव ही करते रहते हैं — जलन, तनाव, ईर्ष्या; यह पाना है, वहाँ पहुँचना है, इससे आगे निकल जाऊँ, उससे छुड़ा लूँ, मेरा कुछ छिन तो नहीं जाएगा, तमाम तरह के डर — यही सब दुख हैं। उलझन, संशय, मोह यही सब दुख हैं।

प्र: गुरुजी, कभी-कभी बहुत ज्यादा टेंशन, बहुत ज्यादा परेशानी, कई सारी चीजें मन में आती रहती हैं। इसको शांत करने का सबसे बेहतर तरीका क्या हो सकता है?

आचार्य: कुछ भी हो सकता है। जान गए एक बार मन को, यही कह दिया करो कि इसकी तो आदत है।…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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