आत्मविश्वास या अंधविश्वास?

ज़्यादातर लोग जो आत्म-विश्वास से छलछला रहे होते हैं, उनका आत्मविश्वास, अन्धविश्वास होता है। उनसे तुम कुछ भी पूछोगे वो तुरंत उत्तर दे देंगें- हाँ, हमें पता है।

उनसे कहीं ज़्यादा भले वो लोग हैं, जो आत्मविश्वास की जगह थोड़ी आत्मशंका करते हैं। क्योंकि दुनिया में कोई भी चीज़ वैसी तो है ही नहीं, जैसी वो लगती है, तो अच्छा ही है न अगर तुम थोड़ा सा ठिठकते हो।

रुक के, देख के, समझ के आगे बढ़ो, इसमें कोई बुराई नहीं है।

जिन्हें बहुत तेज़-तर्रार होकर ज़िन्दगी से गुजरना है, उन्हें गुजरने दो, तुम ज़रा धीरे-धीरे ही चलो। चीज़े अगर अभी नहीं समझ में आयी हैं, तो व्यर्थ अभिनय मत करो कि सब आ गया है समझ में। कहो कि थोड़ा वक्त लगेगा, थोड़ा गहरे उतरुँगा, थोड़ा समय लूँगा। दूसरे हँसी भी उड़ाएँ तो हँसी उड़ाने को तैयार रहो।

आज का समय गहराई का तो है नहीं, तो जब गहरे जाना ही नहीं तो सब कुछ तत्काल ही स्पष्ट है। सतह को देखने में तो समय लगता नहीं, समय तो उनको लगता है, और उलझनें तो उनको होती हैं, जो चीज़ो की सच्चाई और गहराई से जानना चाहते हैं।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org