आत्मज्ञान और कर्म
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, कहा जाता है कि आत्मज्ञान केवल विचार से होता है, तो यहाँ विचार से क्या आशय है?
आचार्य प्रशांत: आत्मविचार। रमण महर्षि भी विचार की उपयोगिता पर बड़ा महत्व देते थे। पर वशिष्ठ या रमण अगर विचार कहें, तो जो हमारा साधारण, विक्षिप्त विचार है, उसकी बात नहीं कर रहे। वह दूसरी कोटि का विचार है, वह दृष्टि है। जैसे कबीर कहते हैं, “साधो करो विचार,” वो देखने की बात कर रहे हैं, समझने की बात कर रहे हैं। तो जहाँ पर विचार कहे कोई मनीषी तो समझिएगा आत्मज्ञान — स्वयं को देखना; स्वयं के बारे में सोचना उतना नहीं जितना स्वयं को देखना।