आज दुश्मन छुपा हुआ है

उन सब चीज़ों पर ध्यान दीजिए जिनपर हमारा आज का जीवन आधारित है।

कहाँ से शुरुआत करूँ? कहीं से भी कर सकता हूँ। चलिए, यहीं से कर लीजिए। सौ साल पहले अगर आप माँस खाते थे तो आपको दिखाई पड़ता था कि जानवर का वध किया जा रहा है, और जानवर खड़ा है, गला कट रहा है, वो चीत्कार कर रहा है, खून बह रहा है, पंख नोचे जा रहे हैं, या हड्डियाँ हटाई जा रही हैं। ये सब दिखता था। अभी बहुत सुंदर डब्बा आ जाता है पैकेज्ड मीट का, और वो आप ऑनलाइन ऑर्डर कर सकते हैं। और नई-नई स्टार्टप्स निकल रही हैं जो आपको ऑनलाइन पैकेज्ड मीट देती हैं, और वो बड़ा सुंदर लगता है। पीछे की बर्बरता छुपा दी गई। पहले दिखती तो थी कि मारा जा रहा है, वध हो रहा है।

अब तो चाहे तुम जूते का डब्बा मंगवाओ या माँस का डब्बा, वो एक-से ही दिखते हैं। बहुत साफ-सुथरा मामला होगा, बड़ी सुव्यवस्थित दुकान होगी, उसपर लिखा होगा — ‘फ्राइड चिकन’। और वहाँ साफ कपड़ों में वेटर आदि कर्मचारी घूम रहे होंगे, एयर कंडीशनिंग चल रही होगी, बढ़िया रोशनी होगी, संगीत भी चल रहा होगा, साफ-सुथरे सजे-सँवरे हुए लोग होंगे। उसमें कहीं ये प्रकट है कि असली धंधा क्या है? कहीं प्रकट है? आपको ख्याल भी आता है उस वक्त क्या? बोलिए। आता है क्या?

बहुत बातें हैं, मैंने बस शुरू यहाँ से किया। अभी और बातों पर भी आ सकते हैं।

तब नहीं जाते थे इतनी छुट्टियाँ मनाने लोग, अब आप जाते हो। और आप हवाई जहाज़ पर चल देते हो। वो हवाई जहाज़ कितना कार्बन छोड़ रहा है, ये कहीं से प्रकट है क्या? प्रकट क्या है? प्रकट बस ये है कि हॉलीडे हो रहा है है; एयरपोर्ट बढ़िया था, साफ था, चिकना था; हवाई जहाज़ कितनी उन्नत तकनीक का लग रहा है। फिर एयरपोर्ट पर उतरे, फिर होटल पहुँच गए, सब कितना साफ-सुथरा। और जो गंदगी की गई है, क्या वो प्रकट है? और वो गंदगी हमें बर्बाद कर रही नहीं है, कर चुकी है।

आप चिप्स खा रहे हो, चिप्स। सब अच्छा ही अच्छा है। क्या ये प्रकट है कि उस चिप्स के कारण हज़ारों ओरांगुटान मारे गए हैं? आप कहोगे, “अरे! पर ये तो आलू के चिप्स हैं, ओरांगुटान का माँस थोड़ी ही है।” ये प्रकट थोड़े ही है कि वो आलू के चिप्स जिस पाम ऑयल से बन रहे हैं, उस पाम ऑयल के लिए जंगल काटे गए। और उन जंगलों में ओरांगुटान रहता था, वो खत्म ही हो गया, बचा ही नहीं! आप तो कह रहे हो, “मैं तो चिप्स खा रहा हूँ”। अब प्रकट थोड़े ही है कि वो चिप्स नहीं है, ओरांगुटान का खून है। प्रकट है?

तो ये फर्क है आज से सौ साल पहले और आज के समय में। आज सब कुछ ऊपर-ऊपर से चिकना-चुपड़ा है। आपको दिखाया ही नहीं जा रहा कि आप कितना क्रूर, बर्बर, और घटिया जीवन जी रहे हो!

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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