आज दुनिया में अधर्म इतना बढ़ा हुआ क्यों है?

इंसान ने आज तक जो कुछ भी करा, जाना, समझा, उसका कुल मिला-जुला कर नतीजा यह हुआ है कि आज हम महाविनाश पर खड़े हुए हैं।

कुछ ऐसा चाहिए जो बिल्कुल नया हो, एकदम अपूर्व हो।

अगर हम कुछ ऐसा कर रहे हैं जो पुराने ही जैसा है तो पुराने का नतीजा क्या निकला वो तो देख ही रहे हैं। कुछ एकदम मौलिक खड़ा करने की ज़रूरत है। कुछ एकदम ही नया करने की ज़रूरत है।

काश ऐसा हो सकता कि तुम खाते-पीते, मौज करते और मर जाते।

पर ऐसा हो नहीं सकता।

हाँ, बाज़ार ने हमें छवि यही दिखाई है, सपना यही दिखाया है कि ये संभव है कि तुम एक खुश और अच्छी ज़िंदगी जियोगे बिना धर्म के।

आज का बड़े से बड़ा आदर्श, बड़े से बड़ा सपना और बड़े से बड़ी भूल यही है कि बिना सत्य के, बिना धर्म के खुश और अच्छी ज़िंदगी जी जा सकती है।

खुशी के जितने साधन आज उपलब्ध हैं उतने कभी नहीं थे, और धरती आज जितनी दुःखी है, उतनी कभी नहीं थी। इसका सीधा संबंध धर्म की हार से, धर्म के विलोप से, धर्म के अभाव से है।

धर्म जितना हारेगा, धर्म जितना मिटेगा, आदमी उतना ज्यादा आत्मघाती होता जाएगा। वो स्वयं भी दुःख में डूबता जाएगा और पूरी दुनिया में भी दुःख ही फैलाएगा।

धर्म के नाश के दो ही प्रमुख कारण हैं,

पहला, व्यर्थ वस्तुओं का बाज़ार और

दूसरा, झूठे धर्म गुरुओं का प्रचार।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org