आज के समय में कौन सी साधना करें?

पहले देखिये तो सही कि संसार की और जीव की स्थिति क्या है? फिर समझ जाएंगे कि क्या साधना करनी है। यही साधना है, बाहर निकलिए, कत्लेआम है, रोकिए उसको। वो दिन गए कि घर में बैठ कर के एकांत साधना करनी थी। सक्रीय सामाजिक अध्यात्म चाहिए।

पढ़िए तो कि दुनिया में चल क्या रहा है फिर समझ जाएंगे कि आज की साधना कैसी होगी।

हिमालय अब कौन से मनुष्य से अछूते हैं कि तुम हिमालय पर चढ़ जाओगे तो कुछ हो जाएगा। अब तो साधना करनी है तो उस फैक्टरी में जाकर के करो जो हिमालय की बर्फ पिघला रही है। अब तो साधना ये है कि जो उपभोक्ता वर्ग है उसका मन बदलो।

कहाँ तुम जाओगे जंगल में बैठ के साधना करने। जंगल बचे कहाँ है? औसतन, एकड़ों वर्गक्षेत्र से जंगल रोज़ काटे जा रहे है। उन जंगलों को बच्चाओ, ये है साधना। जानते हो इन जंगलों को कौन काट रहा है? आम आदमी काट रहा है। जंगल जा कर के युद्ध नहीं करना है। घर-घर में युद्ध करना है।

दुनिया की एक-चौथाई ग्लोबल-वार्मिंग सिर्फ़ मांस खाने के कारण है, उसके बाद भी जम कर मांस खाया जा रहा है। जाओ जा कर युद्ध करो और सरकार से कहो कि मांस पर ज़बरदस्त टैक्स लगना चाहिए।

लोगों को धर्मग्रंथों के वास्तविक स्रोत तक लेकर के जाओ। ग्रन्थ वो पढ़ें भी और उनको उनके असली अर्थ में समझे भी। ऐसा मॉहौल बनाओ, यही साधना है।

बाज़ार में कुछ भी खेरीदने से पहले पता करो कि वो वस्तु बनती कैसे है और वो आ कहाँ से रही है। सरकारों पर, उत्पादकों पर दबाव बनाओ कि साफ़-साफ़ लिखें की उसका निर्माण कैसे हुआ है, लिखें।

बड़े से बड़े कौरव घूम रहे हैं गुरु बन के। और वो सब वही हैं जो धर्म की हानि में पूरी तरह योगदान दे रहे हैं।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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