आज के समय में आदर्श (रोल-मॉडल) किन्हें बनाएँ?

अँधा ये युग है, अधर्म का ये युग है, तो जितने अधर्मी हैं वही सब रोल-मॉडल बने बैठे हैं और लोग उनको पूज रहे हैं।

अखबार को उठाइए न, देख लीजिए कि किनका नाम छाया हुआ है। वही रोल-मॉडल हैं सब। कोई भी न्यूज़ वेबसाइट खोल लीजिए और देख लीजिये कि किनकी खबरें आ रही हैं और किनकी तस्वीरें छप रही हैं। और क्या होगा उन ख़बरों को पढ़ने वालों का, और उन तस्वीरों को देखने वालों का?

थोड़ा विचार कर लीजिए।

अब ये भी नहीं है कि आप उन तस्वीरों को तब देखेंगे जब आप उन तस्वीरों की माँग करेंगे। अब तो वो खबरें, वो तस्वीरें, आपके गले में हाथ डालकर ठूसी जाती हैं कि — “लो, देखो। देखनी पड़ेंगी।” आप पढ़ना चाह रहे होंगे समाचार और वेबसाइट आपसे पहला सवाल करेगी — ‘इन दोनों में से कौन ज़्यादा कामोत्तेजक है?’ और दो अर्धनग्न कामिनियों के चित्र आपके सामने लटका दिये जाएँगे। हो सकता है आप वहाँ पर यूँ ही कोई साधारण-सी चीज़ पढ़ने गए हों और ये मुद्दा आपके ज़हन में ठूस दिया गया कि — “बीबा और शीबा में ज़्यादा हॉट कौन है?”

आदर्शों की कहाँ कमी है। जो छोटी बच्चियाँ देख रही होंगी, वो क्या कहेंगी? एक कहेगी, “बीबा बनना है,” एक कहेगी, “शीबा बनना है।” मिल गए न आदर्श।

कितना भारी प्रश्न है, यक्ष प्रश्न है ये। इस युग का सबसे केंद्रीय प्रश्न है ये कि — “बीबा हॉट है, या शीबा?” और आप सही चुनाव कर सकें, इसके लिए आपको दोनों की एक नहीं, चालीस-चालीस तस्वीरें दिखाई जाएँगी। भई बड़ा निर्णय है, बड़ा चुनाव है, कहीं आप गलत निर्णय न कर लें, इसीलिए आपको पूरी सूचना दी जाएगी। एक-एक तथ्य खोलकर बताया जाएगा कि और करीब से देखो — किसकी कमर कैसी है, किसकी जांघें कैसी हैं, किसकी वक्ष कैसा है? और नज़दीक से देखो ताकि तुम्हारा निर्णय बिलकुल सही रहे। गलत फैसला हो गया, तो कहीं मुक्ति से न चूक जाओ। जीवन-मरण का सवाल है भाई कि — बीबा और शीबा में ज़्यादा हॉट कौन है?

लो आदर्शों की क्या कमी है।

हाँ, पूरे अखबार में और उन वेबसाइट में तुम अष्टावक्र का नाम खोजकर दिखा दो। बीबा, शीबा, होलो, लोलो — ये सब छाए हुए हैं। दो-दो कौड़ी के लोग जिनके पास जिस्म के अलावा कोई औकात नहीं वो राजा और आदर्श बनकर बैठे हुए हैं। या फिर वो, जो पूँजीपति हैं जिन्होंने रकम इकट्ठा कर ली है। या फिर वो, जो मूर्ख नेता हैं। उन्हीं के वृत्तांत पढ़ते रहो। उन्हीं के बारे में खूब लिखा जाएगा, उन्हीं को आदर्श बनाकर स्थापित कर दिया जाएगा।

कहाँ कमी है आदर्शों की?

इस समय पर स्थिति ये है कि जो इस व्यवस्था के, इस युग के विरोध में नहीं खड़ा है वो इसके समर्थन में है।

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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