आज का युद्ध, आज का कुरुक्षेत्र, और आज का धर्म
यह सुनने में बात अजीब लगेगी लेकिन हर युग के युद्ध अलग होते हैं।
आपने बहुत धर्म सुने होंगे लेकिन जिस धर्म का वास्तव में पालन किया जाता है- वह होता है युगधर्म।
इस युग का धर्म पहचानिये!
आप इस युग में पिछले युग के युद्ध नहीं लड़ सकते। कहाँ है दुर्योधन जिसको आप मारेंगे, बताइए? वह पिछले युग में मारा जा चुका। आज कोई दुर्योधन नहीं है जिससे आप लड़ें।
बीती लड़ाइयाँ थोड़े ही लड़ी जा सकती हैं। लड़ाई तो वही लड़ोगे न जो सामने है।
आज का युद्ध यही है- स्वार्थ की, अज्ञान की ताकतों से लड़ना है। पूंजी की ताकतों से लड़ना है , विनाश की ताकतों से लड़ना है, जो जंगलों को खत्म कर रहे हैं उनसे लड़ना है , जो प्रजातियों को विलुप्त कर रहे हैं उनसे लड़ना है।
आप कहेंगे पर ऐसा तो किसी ग्रंथ में लिखा ही नहीं। अरे भाई! ऐसा किसी ग्रंथ में इसलिए नहीं लिखा हुआ क्योंकि पहले कभी ऐसा हुआ ही नहीं।
आज का धर्म है भोग।
सिखा दिया गया है सबको कि तुम्हारे निजी और छोटे स्वार्थ से आगे कुछ नहीं है। बी हैप्पी!
यह धर्म-हीनता का युग है। बाहर निकलना पड़ेगा, धर्मयुद्ध लड़ना पड़ेगा। तीर-तरकस लेकर के कमरे में मत बैठे रहो। जो जितना कर सकता है, करे और पूरी जान से करे।
आज के युग के अध्यात्म को सक्रिय-सामाजिक अध्यात्म होना ही पड़ेगा।
आचार्य प्रशांत के विषय में जानने, और संस्था से लाभान्वित होने हेतु आपका स्वागत है।