आगामी, संचित, और प्रारब्ध कर्म

कर्माणि कतिविधानि सन्तीति चेत्
आगामिसञ्चितप्रारब्धभेदेन त्रिविधानि सन्ति।

~तत्वबोध

कर्म कितने प्रकार के होते हैं?
आगामी, संचित और प्रारब्ध - तीन प्रकार के होते हैं।

ज्ञानोत्पत्त्यनन्तरं ज्ञानिदेहकृतं पुण्यपापरूपं कर्म
यदस्ति तदागामीत्यभिधीयते ।

~तत्वबोध

ज्ञान की उत्पत्ति के पश्चात ज्ञानी के शरीर के द्वारा जो पाप-पुण्य रूप कर्म होते हैं, वे आगामी कर्म के नाम से जाने जाते हैं।

अनन्तकोटिजन्मनां बीजभूतं सत् यत्कर्मजातं
पूर्वार्जितं तिष्ठति तत् सञ्चितं ज्ञेयम् ।
~तत्वबोध

अनंत कोटि जन्म में पूर्व में अर्जित किए हुए कर्म, जो बीज रूप से स्थित हैं, उसे संचित कर्म जानें।

इदं शरीरमुत्पाद्य इह लोके एवं सुखदु:खादिप्रदं
यत्कर्म तत्प्रारब्धं भोगेन नष्टं भवति
प्रारब्धकर्मणा भोगादेव क्षय इति।

~तत्वबोध

जो इस शरीर को उत्पन्न करके इस लोक में सुख-दु:ख आदि देने वाले कर्म हैं, जिसका भोग करने से ही नष्ट होते हैं, उन्हें प्रारब्ध कर्म जानें।

सञ्चितं कर्म ब्रह्मैवाहमिति
निश्चयात्मकज्ञानेन नश्यति।

~तत्वबोध

संचित कर्म “मैं ब्रह्म हूँ”, इस निश्चय से नष्ट होते हैं।

आगामि कर्म अपि ज्ञानेन नश्यति।
किंच आगामि कर्मणा, नलिनीदलगतजलवत्।
ज्ञानिनां सम्बन्धो नास्ति।
~तत्वबोध

आगामी कर्म ज्ञान से नष्ट होते हैं। आगामी कर्म का कमल के फूल की पंखुड़ी पर जल के समान ही ज्ञानी के साथ कोई संबंध होता नहीं।

आचार्य प्रशांत: ज्ञानोदय का अर्थ होता है — अहम् की विदाई। ‘मैं’ की विदाई के बाद जो भी कर्म होते हैं उन्हें कहा जाता है आगामी कर्म। आगामी कर्मों का कर्मफल कुछ होता नहीं क्योंकि कर्मफल भुगतने के लिए मौजूद कोई होता नहीं। कर्मफल कौन भोगता? ‘मैं’। वह ‘मैं’ ही चला गया तो अब फल भोगेगा कौन? समझ में आ रही बात? जो है ही नहीं उसको ना तो पुरस्कार मिल सकता है, ना सज़ा मिल सकती है। कुछ किया था तुमने, जब तक पुलिस तुम्हें पकड़ने आई, तुम मर चुके थे। कौन सा फल मिलेगा तुम्हें? तो ज्ञानी का ऐसे ही है। उसे कोई फल नहीं मिलता क्योंकि अब वह है ही नहीं। ना पाप उसके लिए कोई मायने रखता है, ना पुण्य उसके लिए कोई मायने रखता। मकान खाली, ना उपहार ग्रहण करने के लिए कोई है, ना सज़ा भोगने के लिए कोई है — ये आगामी कर्म है।

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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