आकाश का देवता नहीं, माटी का महात्मा
आकाश का देवता नहीं,
माटी का महात्मा
~ वो दिखने में अति औसत, बल्कि अनाकर्षक थे।
कद के छोटे, कृषकाय, ढाँचे-सा शरीर, श्यामवर्णी साधारण चेहरा, चेहरे के अनुपात में बड़े-बड़े कान।
न चौड़े कंधे, न चौड़ी छाती।
पिछली कई शताब्दियों में उनकी छवि से ज़्यादा भारत ने किसी की छवि को निहारा नहीं।
उनकी प्रतिमाओं से ज़्यादा किसी की प्रतिमाएँ लगाईं नहीं।
उनके चेहरे से ज़्यादा किसी चेहरे को छापा नहीं।
~ उनकी आवाज़ में न कोई मादकता थी, न गरज।
किसी अनजान भीड़ में कुछ बोलते, तो न कोई सुन पाता, न ध्यान देता।
उनकी एक आवाज़ पर हिन्दुस्तान उठ खड़ा होता था।
उनकी आवाज़ आकाशवाणी की तरह देश के चप्पे-चप्पे तक पहुँचती थी, और दूर-दराज़ का ग्रामीण भी सत्याग्रही हो जाता था।
~ एक वैष्णव वणिक परिवार से होते हुए भी उन्होंने एक बार उत्सुकतावश माँसभक्षण किया, और खूब पछताए।
उनके आश्रम में आकर हज़ारों लोग शाकाहारी हो गए।
उनके नाम के साथ शाकाहार और पशुप्रेम सदा के लिए जुड़ गए।
~ धर्म को लेकर आरम्भ में संशय में रहे। धर्म-परिवतन का भी विचार किया।
युवावस्था में भारतीय दर्शन पर कोई विशेष आस्था न रख पाए।