आओ भूत दिखाएँ

प्रश्नकर्ता: मेरा एक दोस्त है वो ये भूत-प्रेत वगैरह सब में बहुत ज़्यादा विश्वास करता है। हालाँकि पढ़ा-लिखा है वेल एजुकेटेड है लेकिन पता नहीं क्यों ऐसा है। तो बहुत उससे डिस्कशन (चर्चा) हुआ, काफ़ी सारे लॉजिक (तर्क) उसने भी दिए। मैंने कहा — भई मैंने तो कभी नहीं देखे, अगर होते तो मुझे भी दिखते। तो फिर वह बोलता है कि तुमने नहीं देखे तो इसका मतलब ये थोड़े ही है कि नहीं होते हैं, क्या पता तुमको बाद में दिख जाए। तो मतलब इसका मुझे लग रहा था कि बात तो ग़लत है लेकिन मैं कोई शब्दों में उसको सिद्ध नहीं कर पाया कि ग़लत है।

आचार्य प्रशांत: हाँ ये बहुत प्रचलित तर्क है कि भूत-प्रेत का आपको अनुभव नहीं है इसका मतलब ये थोड़े ही है कि वो होते ही नहीं। इसका मतलब बस यही है कि आपको अनुभव नहीं हुआ। तो अनुभव हो सकता है आपको बाद में हो जाए; या क्या पता आपमें ही कोई कमी हो कि आपको इस तरह की दिव्य अनुभूतियाँ नहीं हुआ करती हैं। नहीं ये जो आर्ग्यूमेंट (तर्क) है ये बिलकुल बेकार है।

देखिए, अगर कोई कहे कि, “बताओ काकाटुआ होता है या नहीं होता?” तो हम ज़रुर कह देंगे कि हमें नहीं पता होता है या नहीं होता, क्योंकि हम कुछ भी नहीं जानते काकाटुआ के बारे में न। हमें उसकी परिभाषा ही नहीं बताई गई है। हमें उसके विषय में कोई ज्ञान नहीं है, तो हम तुरंत क्या कह देंगे कि, “भई काकाटुआ हो भी सकता है नहीं भी हो सकता है, हम कुछ नहीं जानते।” हम हाथ जोड़ लेंगे। लेकिन आपसे कोई कहे कि, “बताओ स्क्वेअर-सर्किल (चौकोर-वृत्त) होता है या नहीं होता है?” तो आप ये नहीं कहोगे न कि, “मैं नहीं जानता कि स्क्वेअर-सर्किल होता है या नहीं होता।”

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org