आओ तुम्हें जवानी सिखाएँ

आओ तुम्हें जवानी सिखाएँ

प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी, “जवानी अकेली दहाड़ती है शेर की तरह” — आपकी यह पंक्ति जब से सुनी है, तब से ख़ुद को युवा कहने में शर्म आती है। मुझ में उत्साह की कमी है। वो धार नहीं है जो इस उम्र में होनी चाहिए। किसी भी कर्म में डूबने की कोई प्रेरणा नहीं है। डॉक्टर से मिलता हूँ तो वो कहते हैं — “दवाई लो”; पर मुझे दवाई नहीं लेना। मैं आपके पास आया हूँ, कृपया मुझे सच्चा यौवन सिखाएँ।

आचार्य प्रशांत: यौवन का क्या अर्थ है? उसी अर्थ से शुरू कर लो जो हम सामान्यतया लेते हैं। जब हम कहते हैं ‘जवानी’, या ‘जवान व्यक्ति’, तो आंखों के सामने क्या छवि आती है? शारीरिक रूप से जवान कोई व्यक्ति न? बीस या पच्चीस की उम्र का, अट्ठारह या तीस की उम्र का, उसको हम कह देते हैं कि, “जवान है।” है न? जवानी की ख़ासियत क्या होती है? अभी हम जवानी के उसी अर्थ को ले रहे हैं जो सामान्यतया प्रचलित है। उस अर्थ में भी जवानी की ख़ासियत क्या होती है? या विशेष लक्षण क्या होते हैं?

प्रश्नकर्ता: ऊर्जा से भरा हुआ।

आचार्य प्रशांत: ऊर्जा। और? सपने। कहीं पहुंचने की लालसा और प्रीतम के प्रति आकर्षण, जिसको प्रचलित शब्दावली में ‘प्रेम’ कह दिया जाता है। क्या कह देते हैं — प्रेम। तो प्रेम, ऊर्जा, उमंग, सपने, ये सब लक्षण होते हैं जवानी के — साधारण तौर पर भी। इन्हीं शब्दों को जीवन में और गहराई से ले लो तो जवानी का जो मानसिक या आध्यात्मिक अर्थ है, वो भी स्पष्ट हो जाएगा।

जो शारीरिक रूप से जवान है, उसमें ऊर्जा है भिड़ जाने की, चल लेने की, चुनौतियों को स्वीकार कर लेने की। है न? जो आध्यात्मिक

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org