आओगे तो तुम भी राम के पास ही

प्रसंग:

प्रभु का रूप अतुल्य है

मन्दोदरी ने रावण से कहा, “यदि तुम्हें सीता को पाने की इतनी ही इच्छा है, तो तुम उसके पास राम का रूप धारण करके क्यों नहीं चले जाते?” तुम तो मायावी हो, माया का इतना उपयोग तो कर ही सकते हो। रावण ने उत्तर दिया, “राम का चिन्तन भी करता हूँ, तो भी इतनी गहन शांति मिलती है कि उसके बाद कहाँ छल कर पाऊँगा?” रावण कह रहा है कि मैं रावण सिर्फ़ तभी तक हूँ, जब तक मैंने राम को ख़ुद से ज़बर्दस्ती दूर कर रखा है। राम की यदि छाया भी मेरे ऊपर पड़ गयी, तो मैं रावण रहूँगा ही नहीं।

~ बोध कथा

प्रश्नकर्ता: क्या माया भी राम के पास ही ले जाती है? राम के पास पहुँचने के कौन-कौन से मार्ग हैं? मन में राम को कैसे बसाएँ? क्या सभी जीवों के ह्रदय में राम का ही वास है?

आचार्य प्रशांत: कहानी थी ‘प्रभु का रूप अतुल्य है,’ इस शीर्षक से।

क्या कहती है कहानी?

कहानी कहती है कि मंदोदरी गयी रावण के पास, बोली, “तुम्हें सीता को पाने की इतनी इच्छा है, तो तुम तो महामायावी हो, जाओ, सीता के पास राम ही बनकर चले जाओ अपनी माया का उपयोग करके। राम बनो, सीता के पास चले जाओ, सीता को पा लो। कैद तो तुमने कर ही रखा है सीता को।”

रावण ने कहा, “पगली, राम का रूप भी धरता हूँ, बस ऊपर-ऊपर से राम होने का स्वांग भी करता हूँ, तो भी इतनी गहन शांति मिलती है कि उसके बाद कहाँ छल कर पाऊँ?”

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org