आई.आई.टी., आई.आई.एम. के बाद अध्यात्म की शरण में क्यों गये आचार्य प्रशांत जी?

प्रश्न: आचार्य जी, आप आई.आई.टी., आई.आई.एम. के बाद अध्यात्म की शरण में क्यों गये?

आचार्य प्रशांत जी: हर आदमी की अपनी एक यात्रा होती है और उस यात्रा में दस कारण होते हैं जो उसके पीछे लगे होते हैं।

तुम्हारी अपनी एक यात्रा है जो तुम्हें तुम्हारे कॉलेज से ले कर के जा रही है, मेरी अपनी एक यात्रा रही है, जो मुझे अलग-अलग पड़ावों से होकर ले गई है।

उसमें कुछ ख़ास नहीं हो गया।

यात्रा, यात्रा है, उसको आम या ख़ास उपनाम देने का काम तुम करते हो।

तुमने तय कर लिया है कि इस-इस जगह से होकर अगर वो आदमी गुज़रा तो वो बहुत ख़ास है, और इन जगहों से अगर होकर नहीं गुज़रा, तो उसमें कोई विशेष बात नहीं। तुमको बाहर बैठकर जो बातें बड़ी आकर्षक लगती हैं, वो बातें हो सकता है उसको बिलकुल सामान्य लगती हों, जो उनके करीब रहा है, जो उनसे होकर के ही पूरी तरह गुज़र चुका है।

उसमें कुछ विशेष नहीं है।

कई बार तो मुझ पर ये बात आरोप की तरह डाली जाती है — “अच्छा, खुद तो कर आ ए ये सब, आई. आई. टी., आई. आई. एम्., सिविल सेवा। दुनिया में जो भोगना था वो सब भोग लिए हो, हमसे कहते हो कि सफलता के पीछे मत भागो।”

वाक़ई, कई बार ये बात मुझ पर आरोप की तरह कही जाती है कि — “तुमने तो सब कर लिया, हमें भी तो करने दो।” अरे! मैंने कर नहीं लिया, हो गया। अब माफ़ी माँगता हूँ कि हो गया। धोखे से हो गया, ग़लती थी।

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org