आइन रैंड की द फाउन्टेनहेड पर

प्रश्न: बहुत से लोग हैं जो फाउंटेनहेड पढ़कर जीवन में कोई बदलाव नहीं ला पाते हैं। और दूसरी तरफ़ बहुत ऐसे भी लोग हैं जो इस पुस्तक को पढ़ने के बाद विद्युतीकृत हो जाते हैं। आचार्य जी मैं दूसरे लोगों की श्रेणी में आने के लिए क्या कर सकता हूँ?

आचार्य प्रशांत जी: ढंग से पढ़ो।

जो क़िताब तुम पढ़ रहे हो, उसके पात्र कुछ ऐसे हैं कि अगर उनके साथ वाक़ई रिश्ता बना सको, उनसे रिश्ता बना सको, तो ज़िन्दगी में विद्युत तो दौड़ ही जाएगी। किस्से-कहानियों की तरह नहीं पढ़ो, ज़रा दिल से पढ़ो।

अट्ठारह-बीस साल का था मैं, जब मैंने पढ़ी थी। तो कई दफ़े देखा कि पढ़ते-पढ़ते अचानक उठकर बैठ जाता था, या खड़ा हो जाता था। जो बात होती थी वो बिलकुल अपनी होती थी। और अचम्भा हो जाता था, झटका लग जाता था, कि ये तो बिलकुल मेरी बात है। ये इसको कैसे पता?

जवान लोगों को होवार्ड रोअर्क (फाउंटेनहेड के नायक) से मिलना चाहिए!

बहुत कुछ है उससे सीखने को।

बचपना, नादानियाँ, निर्भरताएँ, दुर्बलता और आश्रयता की भावना — इन सबसे एक झटके में मुक्त करा दे, ऐसा क़िरदार है वो।

ख़ासतौर पर ऐसे युवाजन जो शरीर से तो जवान हो गए हैं, पर मन से अभी भी घरवालों पर या दुनिया-समाज पर आश्रित हैं, व्यस्क नहीं हो पाए हैं! बीस, पच्चीस, तीस के होने पर भी अभी पुरुष नहीं हो पाए हैं।

जिनके भीतर डर अभी भी हो, जो पारिवारिक और सामाजिक सत्ताधारियों की आवाज़ें सुन कर काँप जाते हों, जो घर पर बाप के सामने और स्कूल/कॉलेज में

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org