अहंकार सीमाएं है

अहंकार के साथ एक बड़ी मज़ेदार बात है: वो अपने पर दावा करता है और अपने ही बारे में उसे बड़ा संदेह रहता है। वो अपनेआप पर दावा करता है और अपने ही बारे में संदेहजनक रहता है — ये दोनों बातें जुड़ी हुई हैं।

तो इसीलिए हम जब भी बोलते हैं कि, “मैं कुछ हूँ”, तो यह बात कभी पूरे विश्वास के साथ नहीं बोलते, थोड़ा संदेह बना ज़रूर रहता है। इसीलिए हम अपने आपको बहुत ऊँचा नहीं बोल पाते क्योंकि हमें अपने बारे में सदा कुछ न कुछ संदेह बना रहता है।

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org