अहंकार का आखिरी दाँव क्या होता है?

अहंकार का आखिरी दाँव क्या होता है?

प्रश्नकर्ता: एक और प्रश्न था कि माया अपना आखिरी दाँव खेलती है; अहंकार- वो कैसे पता चले?

आचार्य प्रशांत: दाँव कुछ नहीं होता उसका। आखिरी तो तब न जब किसी बिंदु पर आ करके उसको मिट जाना हो। आप सतर्क, सावधान रहिए जब तक देह है तब तक माया है। उसका कोई आखिरी दाँव नहीं होता। जब भी वो बोले — ‘आखिरी है’, समझ लीजिए कि अगला आ रहा है।

आखिरी जैसा कुछ नहीं है वहाँ पर। ये भी हो सकता है कि जीवन भर किसी तरह आप बच गए और आखिरी साँस में पिट गए क्योंकि आप थोड़े से असतर्क हो गए थे, असावधान हो गए थे। आप को लगा कि अब तो खेल खत्म ही हो गया, आखिरी साँस है; वो आखिरी साँस में पीट जाएगी।

इस चक्कर में तो रहिएगा ही नहीं कि, “मोक्ष इत्यादि मिल गया है अब माया हमारा क्या बिगाड़ लेगी?” वो किसी मोक्ष-वोक्ष की परवाह नहीं करती। यहाँ एक-से-एक मुक्त जन हैं और माया उनको लपेट जाती है। कहती है — ‘तुम अपनी मुक्ति ही गाते रहो, हम अपना काम कर जाएँगे।‘

तो उसका फिर एक ही तरीका है — सतत् सावधानी। उस सावधानी के दो नाम हैं — बोध और प्रेम। या तो लगातार जागृत रहें या फिर लगातार सुमिरते रहें।

प्र: मेरा प्रश्न समर्पण के प्रति है कि समर्पण को हम कैसे हमारी डेली लाइफ (दैनिक जीवन ) में यूज़ (उपयोग) करके एक जैसे विचलित मन के सिवा, जैसे कोई भी काम है तो सरेंडर (समर्पण) को उसमें कैसे…?

आचार्यः नहीं, समर्पण जिसके प्रति होता है उसका तो नाम ही नहीं लिया जा सकता। जब उसका नाम नहीं लिया जा सकता तो उसके प्रति समर्पण की बात करना…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org