अहंकार और सत्य में क्या अंतर है?

प्रश्नकर्ता: इगो (अहंकार) में और सत्य में क्या अंतर है?

आचार्य प्रशांत: जितने अंतर हैं वह सब इगो में ही हैं। अंतर कुछ कर लो, समानताएँ और अंतर यह सब मानसिक परिकल्पनाएँ हैं। आत्मा में ना कोई भेद होता है, ना अभेद होता है। तुम अगर पूछोगे कि, “अहंकार और आत्मा में क्या भेद है?” तो यह बड़ा अहंकारित प्रश्न है, इसका क्या उत्तर दूँ?

आत्मा वह है जिसके ऊपर अहंकार बैठ सकता है। आत्मा वह है जिससे पोषित होकर ही अहंकार भी आत्मा का रूप धारण कर पाता है। अब इन दोनों में अंतर कैसा? सत्य वह नहीं है जो असत्य का विरपीत हो, सत्य वह है जो असत्य भी वास्तव में है। अगर सत्य और असत्य दो होते, फिर तो दो सत्य हो गए न? एक सत्य, सत्य और दूसरा सत्य, असत्य। दो नहीं होते। सत्य होता है और असत्य भी सत्य ही होता है।

जब तुमने सत्य को सत्य जाना तो वह सत्य है, और जब सत्य को तुमने कुछ और जाना तो वह असत्य है। असत्य वह है जो वास्तव में होता ही नहीं। अहंकार वह है जो आत्मा ही है पर जिसे तुम कुछ और समझे बैठे हो।

एक बार किसी ने पूछा था तो उन्होंने कहा था, ऐसे सवाल था कि, काम और राम में क्या अंतर है, तो मैंने कहा था राम को राम के अलावा कहीं तलाशना काम है। जब तुम काम में भी होते हो तो तलाश तो राम ही रहे होते हो।

अब दो तरह के लोग होते हैं। एक वह जिन्हें राम चाहिए तो सीधे राम के पास जाते हैं, और दूसरे वह जिन्हें राम चाहिए तो इधर-उधर भटकते हैं, काम में भटकते हैं। भटकना काम है, भटकना ही अहंकार है। अहंकार को भी अंत में चाहिए क्या? अहंकार को भी अंततः शांति ही चाहिए। मूर्खता उसकी ऐसी सघन है कि शांति वह सीधे नहीं पा लेता, वह शांति के लिए टेढ़े-तिरछे रास्ते अपनाता है। जहाँ खड़ा है वहीं पहुँचने के लिए पूरे संसार का…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org