अहंकार और अनुशासन

प्रश्नकर्ता: अहंकार क्या है और अहंकार से छुटकारा कैसे मिलेगा?

आचार्य प्रशांत: जैसे कह रहे हो न, “मैं सवाल पूछ रहा हूँ मुझे उत्तर जानना है”, तो ये जो लगातार ‘मैं’ की भावना है इसको अहंकार कहते हैं। अहंकार का अर्थ होता है आइ, मैं। दिन रात जिसकी बात करते रहते हो वो अहंकार है। जो पूछे वो अंहकार, जो सुने वो अहंकार, जो स्वीकार करे वो अहंकार, जो अस्वीकार करे वो अहंकार।

प्र: उससे मुक्त कैसे हुआ जाए? उससे तादात्म्य कैसे तोड़ा जाए?

आचार्य: “मैं स्वयं से ही मुक्त होना चाहता हूँ” देखो तो क्या पूछ रहे हो। “मैं अहंकार से मुक्त कैसे हो जाऊँ?” और अहंकार माने?

श्रोतागण: मैं।

आचार्य: तो “मैं, मैं से ही कैसे मुक्त होऊँ?”

मुक्ति वगैरह की कोई ज़रुरत नहीं है, देख लो कि यूँ ही मूर्खता चलती रहती है। फिर उसको गंभीरता से नहीं लेते, यही मुक्ति है। हमारा क्या है हम तो कहीं भी जा कर चिपक जाते हैं। जैसे-जैसे अपनी हरकतों का, अपने इरादों का पता लगता जाता है वैसे-वैसे अपने प्रति आसक्ति ख़ुद ही छूटती जाती है।

प्र२: जैसे दीर्घकालिक लक्ष्य होते हैं उन लक्ष्य को प्राप्त करने में जो मेहनत लगती है उसकी तरफ स्वभाविक रूप से रुचि उत्पन्न नहीं होती क्योंकि रास्ता बड़ा कठिन होता है। ऐसे में हमें छोटे लक्ष्यों की ओर ही जाना पड़ जाता है। बड़े लक्ष्य के लिए अपने में डिसिप्लिन (अनुशासन) कैसे लाया जाए?

आचार्य: डिसिप्लिन शब्द का अर्थ समझते हो? डिसाइपल होना, शिष्य होना। “सच्चाई का चेला हूँ”…

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org