अस्तित्व की सुंदर व्यवस्था

हमें बड़ी सुविधा रहती है ये कह देने में कि प्रकृति में, शरीर में, सूरज में, नदी में, इन सबमें तो व्यवस्था है लेकिन आदमी के जीवन को सुचारू चलाने के लिए आदमी को व्यवस्था बनानी पड़ेगी। ये बात बिल्कुल गलत है।

आत्मा के तल पर व्यवस्था है, प्रकृति के तल पर भी व्यवस्था है। बीच में बैठा है मन, जो कहता है कि व्यवस्था नहीं है, मुझे तो स्वयं ज़िम्मेदार होना पड़ेगा व्यवस्था लाने के लिए।

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रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org