असली माँ कैसी?

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, आज आश्रम आते हुए मन ज़रा दुविधापूर्ण रहा, आँखें अश्रुपूरित थीं। ख्याल आ रहा था कि देर रात घर से बाहर रहूँगी जब की आज दोनों बेटे घर पर ही हैं। मन चाहता था उनके साथ समय बिताऊँ, घर से बाहर ना जाऊँ।

आचार्य प्रशांत:

जो आप अपने आपको मानते हैं, उसी के अनुसार आपको विचार आते हैं। जो आप अपने आप को मानते हैं उसी के अनुसार आपके लिए क्या अच्छा है, क्या बुरा ये आप निर्धारित कर लेते हैं। और जो आप अपने आपको मानते हैं उसी के अनुसार आपके कर्तव्य तय हो जाते हैं।

ठीक है?

होने को आप ५० अलग-अलग चीज़ें हो सकते हैं। होने को आपकी ना जाने कितनी भांति-भांति की पहचानें हो सकती हैं। और हर पहचान के अनुसार हमने कहा विचार आ जाएँगे, अच्छे-बुरे, सही-ग़लत का ख्याल पैदा हो जाएगा, भावनाएँ उठने लगेंगी, कर्तव्य और कर्म निश्चित हो जाएँगे। और हमने कहा कि बहुत सारी विभिन्न पहचानें हो सकती हैं आपकी। विचार तो बाद की बात है। विचार तो आपकी पहचान की छाया हैं। जो आपने अपनी पहचान बनाई, उसी के अनुसार आपको विचार आ गए और जो विचार आ गए, उसी के अनुसार आगे आपके कर्म भी हो जाएँगे।

है न?

तो आपने अपने विचारों की बात करी है कि आज जब मैं जब सत्संग के लिए आ रही थी तो विचार उठ रहा था कि घर पर ही रहूँ, दोनों बेटे घर पर हैं और रात का समय है, मैं क्यों बाहर जा रही हूँ?

विचार सही या ग़लत होते ही नहीं। विचार तो हमने कहा कि जो आपने चुनी है पहचान उसकी छाया भर है। विचार तो बड़ी मजबूत चीज़ हैं। आपने एक…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org