असली चीज़ फिर भूल गए

एक बात समझ लेना कि कोई समय ऐसा नहीं आता जब तुम कह दो कि तुम्हें अब पुस्तकों की या सत्संगति की कोई ज़रूरत नहीं है। अगर तुमने एक बार ये मान लिया कि साधना कल खत्म हो सकती है तो जान लेना कि वो अभी खत्म हो गई। जिस भी कुकृत्य की सम्भावना मन के लिए कल की बनती है मन उसे तत्काल कर देना चाहता है।

मन का काम क्या है? शुभ को वो टालता है और अशुभ को वो तत्काल कर गुज़रता है।

आध्यात्मिक जगत सूक्ष्म है। वहाँ तुम भूल भी जाते हो तो भूले रहना आसान है। वहाँ कोई स्थूल संदेश, कोई प्रकट लक्ष्ण आता ही नहीं जो तुम्हें याद दिला दे कि तुम भूल गए। हमारी सारी त्रासदी ही यही है कि वो सबकुछ जो कब का भुला देना चाहिए वो दिमाग से उतरता नहीं। और जो बात लगातार याद रहनी चाहिए वो याद रहती नहीं।

जब भी कभी पाओ कि बेचैनी आ गयी है, दुःख ने हमला बोल दिया, तो समझ लेना कि कुछ भूल गए थे। चोट लगती ही उन्हें है जो भूल बैठते हैं। चोट अपने आप में सर्वोत्तम विधि है याद रखने की।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org