असफल होने पर यदि हिम्मत टूटने लगे

प्रश्नकर्ता: सर, जीवन में ऐसी परिस्थितियाँ आती है जब अपने लक्ष्य के लिए पूरी मेहनत करने के बावजूद सफलता नहीं मिलती, हिम्मत पूरी तरह से टूट जाती है। ऐसे में कुछ भी करने का मन नहीं करता, कोई मोटिवेशन काम नहीं आता। ऐसी परिस्थिति से बाहर कैसे निकलें?

आचार्य प्रशांत: दो अलग-अलग स्थितियाँ हैं ये जिनकी आपने चर्चा करी है। एक तो बात ये हो सकती है कि जो आपने लक्ष्य उठाया है, जिस काम में असफलता मिली है, वो काम ही ऐसा नहीं था कि उसमें आपको सफलता भी मिल जाती तो आप पर वास्तव में कोई बड़ा फर्क पड़ जाता। और दूसरा हो सकता है कि आपने जो काम उठाया है वो काम वाकई बहुत कीमती, बहुत ऊँचे दर्जे का था।

तो सवाल सफलता-असफलता को, और निराशा को ले करके है। मैं इस सवाल को और थोड़ा पीछे ले जा रहा हूँ। मैं यहाँ पर ले जा रहा हूँ कि, “किस काम में मिली है सफलता या असफलता?” मेरे समझ से वो प्रश्न ज़्यादा ज़रूरी है पूछना।

सफल हुए, असफल हुए ये थोड़ा बाद की बात है। ज़्यादा पहले की बात ये है कि किस काम में सफल हुए या असफल हुए। तो कौन-सा काम चुना था और कैसे चुना था इस पर गौर करो। पूछो अपने-आपसे।

तुम्हें कैसे पता कि तुम जिस काम में लगे थे, जिस लक्ष्य के पीछे लगे थे वो करने लायक था ही, ये तुम्हें कैसे पता? क्योंकि अगर करने लायक होता है कोई काम तो इंसान उसको छोड़ नहीं सकता। वो उस काम के आगे मजबूर हो जाता है। तुम्हें करना ही पड़ेगा। वो एक तरीके से नहीं हो रहा है, तुम दूसरे तरीके से करोगे। तुम्हें जीवन भर भी असफलता मिलती रहे, तो भी तुम लगे रहोगे। तुम अपना मन, बुद्धि, सारी ताकतें लगा दोगे रास्ता खोजने के लिए कि “कैसे आगे बढ़ता रहूँ? कैसे आगे बढ़ता रहूँ! हो सकता है अंत तक नहीं पहुँच पाऊँ, तो भी आगे बढ़ता रहूँ।” ये सही काम की निशानी होती है।

सही काम में सफलता-असफलता बहुत ज़्यादा मायने नहीं रखती। मैं ये नहीं कह रहा कि सफलता से कोई फर्क नहीं पड़ता अगर कोई काम सही है और असफलता से मन नहीं टूटता अगर काम सही है। सफलता-असफलता से फर्क तो पड़ता ही है इंसान पर, लेकिन एक सीमा के अंदर पड़ता है अगर काम सही चुना है।

अगर काम सही चुना है, जिस प्रोजेक्ट में, जिस अभियान में तुम लग रहे हो वो वाकई ज़रूरी है, वो तुम्हारे विवेक से निकला है, वो निर्णय तुमने बहुत समझदारी से किया है तो सफलता से तुम बहुत ज़्यादा फूल नहीं जाओगे और असफलता से बहुत घबरा नहीं जाओगे।

अधिकांशतः हमारे साथ अब होता क्या है ये समझना। अधिकांशतः हमारे साथ ये होता है कि हमने जो लक्ष्य चुनें होते हैं, हम जिन कामों में लगे होते हैं, वो काम सिर्फ भेड़ चाल के कारण हमने चुने होते हैं। वो लक्ष्य वास्तव में हमारी अपनी समझ से निकले ही…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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