अल्पसंख्यक

मुश्किल है

खाने की मेज़ पर, बस के अन्दर

या बस टहलते हुए

बतियाना

दिशाओं से फूट-फूट पड़ते

अंधेरों की चर्चा में

आँख यूँ चमकाना

जैसे

हमने (बस तुमने और मैंने)

इन्हें अभी-अभी पकड़ा हो ।

कभी मायूस होना

और चर्चा को गंभीरता के साथ

मौका देना

आपसी निगाहों को

जानने का

थोड़ा बहुत अँधेरा

स्याह कर चला है

हमारे चेहरों को भी,

सच, मुश्किल है ।

और मुश्किल है

सम्पादक को पत्र लिखना

सर्वोच्च संस्थाओं से गुहार मारना

ग्रोथ रेट के आकड़ों के ऊपर

मुस्कुराकर चाय का घूँट पीना ।

मुश्किल है

जज़्ब करना

जब हमारी आँखें चमकी थीं

अँधेरा थोड़ा और बढ़ गया था

और और मुश्किल हो गया था

पृथक करना

अँधेरे से तुम्हारे चेहरे को।

पीड़ा हुई थी

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org