अल्पसंख्यक
2 min readDec 15, 2022
मुश्किल है
खाने की मेज़ पर, बस के अन्दर
या बस टहलते हुए
बतियाना
दिशाओं से फूट-फूट पड़ते
अंधेरों की चर्चा में
आँख यूँ चमकाना
जैसे
हमने (बस तुमने और मैंने)
इन्हें अभी-अभी पकड़ा हो ।
कभी मायूस होना
और चर्चा को गंभीरता के साथ
मौका देना
आपसी निगाहों को
जानने का
थोड़ा बहुत अँधेरा
स्याह कर चला है
हमारे चेहरों को भी,
सच, मुश्किल है ।
और मुश्किल है
सम्पादक को पत्र लिखना
सर्वोच्च संस्थाओं से गुहार मारना
ग्रोथ रेट के आकड़ों के ऊपर
मुस्कुराकर चाय का घूँट पीना ।
मुश्किल है
जज़्ब करना
जब हमारी आँखें चमकी थीं
अँधेरा थोड़ा और बढ़ गया था
और और मुश्किल हो गया था
पृथक करना
अँधेरे से तुम्हारे चेहरे को।
पीड़ा हुई थी