अलग-अलग धर्म क्यों हैं?

प्रश्नकर्ता: हर धर्म में ये जो अलग-अलग पैटर्न्स बनाये हुए हैं कि पूजा करो, नमाज़ पढ़ो। इनका क्या मतलब है?

आचार्य प्रशांत: (ऊपर की ओर इशारा करते हुए) वो सूरज है।

तुमने यहाँ से देखा तो यह नीम का पेड़ बीच में है। नीम के पेड़ के माध्यम से देखा।

सूरज बहुत तेज चमकता है। इंसान की आँख में इतनी औकात नहीं होती कि सीधे उसको देख पाए। तो तुमने सूरज को कैसे देखा? नीम के पेड़ के नीचे से देखा ताकि पत्तियों की थोड़ी-सी छाया रहे। पर तुमने सूरज को देख लिया। समझ लिया कि कुछ है; जिससे जिंदगी चलती है, जो हमारी सारी ऊर्जा का स्रोत है।

तुम सूरज को जान गयी। लेकिन तुमने सूरज को नीम के पेड़ के माध्यम से जाना। तो तुमसे पूछा गया कि सूरज कैसा है? तो तुमने कहा, “मैं बताती हूँ सूरज कैसा है”। और तुमने सूरज बनाया, जिसमें सूरज के साथ-साथ नीम के पत्ते भी शामिल थे।

उसके बाद किसी और से कहा गया कि पता करो कि हमारा जीवन किससे चल रहा है? कौन है जो हमें रोशनी और ऊर्जा देता है? अब सूरज को तो सीधे देखा नहीं जा सकता। इंसान की तो इतनी हैसियत ही नहीं है। तो उसने चश्मा लगाकर देखा।

तो अब उससे पूछा गया कि “बताओ बताओ सूरज कैसा है?” तो उसने एक किताब लिख दी। उस किताब में सूरज जितना था, सो था, साथ में बहुत सारा चश्मा था। फिर किसी और का नंबर आया। उसकी इतनी हिम्मत नहीं कि ऊपर मध्यान में चढ़े हुए सूरज को देख ले। तो उसने ढ़लते हुए सूरज को देखा; जो बादलों के थोड़ा पीछे हो रहा था। तो उसने भी थोड़ा देख लिया, पर आधा देखा और साथ में बादल भी देखे।…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org