अर्जुन गीता ज्ञान भूल क्यों गए?
प्रश्नकर्ता: प्रणाम, आचार्य जी। हाल ही में उत्तर गीता के बारे में ज्ञात हुआ। अभी तक श्रीमद्भगवद्गीता के कृष्ण-अर्जुन संवाद को सुना था। अब कुरूक्षेत्र के युद्ध पाश्चात्य हुए इस संवाद को सुन कर अचरज हुआ। इस संवाद की ज़रूरत क्या थी? राजपाठ मिल जाने के बाद अर्जुन दोबारा कृष्ण को गीता सार समझाने की प्राथना क्यों करते हैं?
मैंने थोड़ा जाँच-पड़ताल करी तो देखा कि आज तक इस ग्रंथ पर ज़्यादा कुछ बोला भी नहीं गया है। अगले महीने आप उत्तर गीता पर कोर्स लेने जा रहे हैं, कृपया श्री कृष्ण अर्जुन के इस संवाद के बारे में कुछ कहें।
आचार्य प्रशांत: कई बातें हैं जो पता चलती हैं उत्तर गीता के अस्तित्व मात्र से। पहली बात ये कि अभ्यास और निरंतरता बहुत ज़रूरी है। भले ही गुरु के रूप में स्वयं श्री कृष्ण हों, और भले ही उपदेश के रूप में स्वयं श्रीमद्भगवद्गीता हों, और भले ही शिष्य के रूप में अर्जुन जैसा सुयोग्य और प्रेमी श्रोता हो , फिर भी भूल तो जाते ही हैं।
उत्तर गीता की शुरुआत ही इससे होती है कि युद्ध पूरा हो चुका है, कुछ समय बीत चुका है। श्री कृष्ण और अर्जुन भ्रमण कर रहे हैं और अर्जुन कहते हैं, "आपने मुझे तब गीता में जो कुछ बताया था वो भूलने लगा हूँ।"
कृष्ण थोड़ा क्रोधित भी होते हैं। कहते हैं, "कैसे आदमी हो तुम? तुम गीता भूल गए?" और फिर श्रीमद्भगवद्गीता का ही सार संक्षेप उत्तर गीता में निहित है। दोबारा एक तरीके से गीता का ज्ञान दिया जाता है अर्जुन को।
पर देखिए, समझिए, समझाने वाले पहले भी कौन थे? और उपदेश में कोई कमी थी? और जो सुनने वाला था वो भी शिष्यों में उच्चतम कोटि का था, लेकिन फिर भी भूल गया। लेकिन श्रेय देना पड़ेगा अर्जुन को कि वो पूछता है दोबारा। और दोबारा सुनता है।