अमर होने का तरीका

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी प्रणाम, हमारी शारीरिक मृत्यु तो होगी ही पर क्या मन की सारी कामनाओं का खत्म होना ही अमरता है?

आचार्य प्रशांत: हम ग़लत चीज़ के साथ कामना जोड़ना बंद कर देंगे। मान लीजिए मेरे गले में प्यास उठी और मैंने ये कागज़ चबाया, थोड़ी देर में फिर प्यास उठी और मैं कलम चबा गया, थोड़ी देर में फिर प्यास उठी मैं माइक को चबाने लग गया, और मैं कर क्या नहीं रहा हूँ? पानी नहीं पी रहा हूँ।

कामना क्या है? कामना में दो चीज़ें होती हैं — एक कामना करने वाला जिसे हम बोलते हैं अह्म, दूसरा कामना का विषय। भाई जो कामना कर रहा है उस बेचारे को क्या दोष दें? उसका अपने बारे में विचार ही यही है कि उसे किसी चीज़ की आवश्यकता है तो वो तो कामना करेगा क्योंकि उसको लग रहा है कि आवश्यकता है। अगर उसे कामना करनी ही है तो कम-से-कम ऐसी वस्तु की कामना करे जो उसकी कामना को मिटा दे, जो उसकी प्यास को बुझा दे।

और प्यास बुझाने की जो प्रक्रिया होती है वो अध्यात्म में विशिष्ट होती है। अगर मेरे गले में प्यास लगी है और मैं पानी पीता हूँ और प्यास बुझ जाती है तो जानते हैं इससे प्रमाणित क्या होता है? कि प्यास असली थी। भौतिक जगत में जब हम अपनी कामना की पूर्ति करते हैं तो कामना की पूर्ति होती है कामना के सत्यापन से। या कामना की पूर्ति और कामना का सत्यापन, फुलमिलमेंट ऑफ़ डिज़ायर और वैलीडेशन ऑफ़ डिज़ायर साथ-साथ चलते हैं क्योंकि अगर कामना पूरी हो रही है तो उससे यही सिद्ध होता है कि कामना असली थी।

अध्यात्म में कामना की जो पूर्ति होती है वो ज़रा दूसरे तरीके से होती है। वो ऐसे होती है कि आप किसी ऐसी जगह पहुँच जाते हैं जहाँ आपको ये दिख जाता है कि वो कामना ही व्यर्थ थी। तो अध्यात्म में जो फुलफिलमेंट ऑफ़ डिज़ायर (कामना की पूर्ति) होता है वो वैलिडेशन ऑफ़…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org