अमरता का वास्तविक अर्थ
8 min readMar 1
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शून्य मरे, अजपा मरे, अनहद हूँ मरी जाय।
राम सनेही ना मरे, कहे कबीर समझाय।।
~ संत कबीर
वक्ता: ‘चंदा मरे है, सूरज मरे है’, बात कल्पना से थोड़ी आगे की है। खींचती है कल्पना को, आमतौर पर हम कभी ऐसा सोचते नहीं कि दुनिया ऐसी भी हो, जिसमें चाँद ना हो सूरज ना हो। चाँद, सूरज नहीं रहेंगे; चलो ठीक है फिर भी मान लिया कल्पना को खींच-खांच कर इस छवि को भी कल्पना के भीतर कर लिया कि नहीं है…