अमरता का वास्तविक अर्थ

शून्य मरे, अजपा मरे, अनहद हूँ मरी जाय

राम सनेही ना मरे, कहे कबीर समझाय।।

~ संत कबीर

वक्ता: ‘चंदा मरे है, सूरज मरे है’, बात कल्पना से थोड़ी आगे की है। खींचती है कल्पना को, आमतौर पर हम कभी ऐसा सोचते नहीं कि दुनिया ऐसी भी हो, जिसमें चाँद ना हो सूरज ना हो। चाँद, सूरज नहीं रहेंगे; चलो ठीक है फिर भी मान लिया कल्पना को खींच-खांच कर इस छवि को भी कल्पना के भीतर कर लिया कि नहीं है चाँद सूरज, चलो। ‘शून्य मरे, अनहद मरे!’, शून्य मर गया अनहद मर गया; ये नहीं रहे, ये कैसे हो गया? इसकी तो कभी नहीं कल्पना की थी कि अनहद मर सकता है। कल्पना कर सकते हैं कि मर सकता है। कल्पना बिलकुल कर सकते हैं कि मर सकता है और अगर ना की जा रही हो कल्पना, तो सो जाइये। अब कहाँ गया शून्य और कहाँ गए अनहद?

एक बार एक व्यक्ति से किसी ने पूछा — मुल्ला नसरुदीन मान लीजिए — कि तुम जा रहे हो, अँधेरा रास्ता है, सुनसान बियाबान, तुम पर एक चोर आक्रमण कर देता है, तुम क्या करोगे? मुल्ला ने तुरंत कहा, ‘’मैं तुरंत अपने दोस्त को आवाज दूँगा और उसकी मदद से चोर को भगा दूँगा।’’ सवाल पूछने वाले ने कहा, अच्छा! चलो मान लो अगर दस डकैत आक्रमण कर देते हैं, तो क्या करोगे? बोलता है, ‘’तो मैं अपने दस दोस्तों को आवाज दूंगा और दस डकैतों को भगा दूँगा।’’ पूछने वाला जो पूछना चाह रहा था वो पूछ ही नहीं पा रहा था। उसने कहा मुल्ला, ‘’अरे! मान लो अगर एक पूरी सेना ही तुम पर आक्रमण कर दे तो क्या करोगे?’’ बोला, ‘’अरे! तो मैं अपनी दोस्तों की सेना को बुला के उन सब को भगा दूँगा।’’ सवाल पूछने वाले ने कहा, ‘’मुल्ला…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org