अभी और कितना सहारा चाहिए तुम्हें?

प्रश्नकर्ता: सर, मन की आदत है कि वो या तो आकर्षण पर चला है या विकर्षण पर। जब उसे ये समझ में आता है रिश्तों में या किसी और जगह पर कि नकली है तो वो कुछ असली तलाशता है।पर असली की तलाश में भी कुछ चाहता है पाना। तो वो या असली कैसे मिले? कैसे समझाएं इस मन को?

आचार्य प्रशांत: और यदि बात ये हो कि जिस सहारे की आप माँग कर रही हैं, वो सहारा मिला ही हुआ हो। जैसे कोई छोटा बच्चा हो जो साइकिल चलाना सीख रहा हो और आती…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org