अभिनेताओं और खिलाड़ियों का हमारे जीवन में कितना महत्व हो?

प्रश्नकर्ता: हमारे जीवन और समाज में अभिनेताओं और खिलाड़ियों का कितना महत्व है? अखबारों में, पत्रिकाओं में, मीडिया में और इंटरनेट पर यही छाए रहते हैं।

आचार्य प्रशांत: अभिनेताओं और खिलाड़ियों का समाज में उतना ही महत्व होना चाहिए जितना मन में मनोरंजन का महत्व होना चाहिए। आप किसी व्यक्ति को उतना ही तो महत्व देते हो न जितना वो आपके काम का होता है। देखिए कि आप जिसको महत्व दे रहे हैं वो आपके जीवन में क्या लेकर के आ रहा है। देखिए कि आप कितना मूल्य देते हैं उस चीज़ को जो वो व्यक्ति आपके जीवन में लेकर के आ रहा है।

जब हम एक गलत जीवन जी रहे होते हैं जिसमें हमने तनाव का, दुख का चयन कर लिया होता है किसी लालच या किसी डर की वजह से तो हमारे लिए मनोरंजन बहुत ज़रूरी हो जाता है। मन लगातार परेशान है, दबाव में है, चिढ़ा हुआ है, डरा हुआ है, ऐंठा हुआ है तो फिर वो मनोरंजन माँगेगा न। जब वो मनोरंजन माँगेगा तो आपके लिए कौन बहुत आवश्यक हो जाएगा? वो जो आपका मनोरंजन करता है। मनोरंजन कौन करते हैं? अभिनेता करते हैं, खिलाड़ी करते हैं। तो अगर आप किसी व्यक्ति को ऐसा पाएँ, या पूरे एक समाज को ऐसा पाएँ कि उसमें सबसे प्रसिद्ध लोग उसके सेलिब्रिटी ही यही बन गए हैं अभिनेता और खिलाड़ी वगैरह, तो समझ लीजिए कि ये जो व्यक्ति है या ऐसे व्यक्तियों से बना जो समाज है वो बहुत ग़लत जी रहा है।

मनोरंजन की इतनी ज़रूरत ही नहीं होती अगर आप एक सही जीवन जी रहे होते। जो सही जी रहा है उसे अपने काम में तकलीफ थोड़े ही होगी, उसे अपने घर से तकलीफ थोड़े ही होगी, उसे अपने रिश्तो में तकलीफ थोड़े ही होगी।

हमारी हालत समझिए, नौकरी ऐसी ले रखी है जो बिलकुल मन को रौंदती रहती है। माहौल खराब है, सहकर्मी खराब है, बॉस खराब है। लगातार डर का, लालच का और तनाव का माहौल है तो लगातार आपको किस चीज़ की खुराक चाहिए होगी? मनोरंजन की, कि जल्दी से कोई छम-छम, छम-छम गाना सुन लो क्योंकि अभी-अभी क्या हुआ है? अभी-अभी बॉस ने छम-छम करी थी कमरे में बुलाकर। तो बाहर निकले नहीं कि फिर ज़रूरी हो जाएगा कि जल्दी से इयरफोन लगाओ और कुछ ऐसा सुन लो कि बॉस से जो अपनी दुर्गति करा कर आ रहे हो उसको भुलाया जा सके।

अब घर आ रहे हैं, वहाँ पर बीवी से या शौहर से तकरार है। एक-दूसरे का चेहरा नहीं देखना चाहते। बच्चे ऐसे पैदा कर दिए हैं कि वो खून पीते हैं, तो अब विकल्प क्या है? विकल्प यही है कि जल्दी से टीवी खोलो और उसमें मुँह डाल दो।

और टीवी में भी कोई ढंग की बात, कोई ज्ञान की, जानकारी की, चेतना को उठाने वाली बात आप सुन नहीं पाएँगे। सुन इसलिए भी नहीं पाएँगे क्योंकि टीवी में ऐसी चीज़ें ज़्यादा आती भी नहीं हैं। तो आप माँगते हैं…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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