अब तो सुधर जाओ, कल मौका मिले न मिले
गलत जीवन दर्शन का नतीजा है कोरोना महामारी।
ये आपदा हमारी भोगवादिता का नतीजा है।
ये आपदा नतीजा है,
एक बिल्कुल ही गलत जीवन दर्शन का,
जो हमसे कहता है कि हम शरीर मात्र हैं और
जीवन का उद्देश्य है खाना-पीना, मौज बनाना,
सुख करना, भोग करना।
यही इस समय विश्व पर छाया हुआ सिद्धांत है।
कहने को विश्व में इस वक्त बहुत धर्म हैं,
पंथ हैं, मज़हब हैं — ईसाइयत है, इस्लाम है,
सनातन धर्म है, बौद्ध धर्म है और न जाने
कितने पंथ और शाखाएँ हैं।
लेकिन इस वक्त विश्व में वास्तव में
निन्यानवे प्रतिशत लोग सिर्फ़ एक धर्म को
मानने वाले हैं, उसका नाम है- भोग धर्म।
ये जो आपदाएँ हम पर
एक-एक कर के टूट रही हैं,
(सार्स, स्वाइन फ़्लू, मर्स, बर्ड फ़्लू, कोरोना)
उसका कारण है भोग धर्म।
इस भोग धर्म ने हमको,
सच्चे धर्म से अलग कर दिया है।
इस भोग धर्म ने हमें सिखा दिया है कि
हम ही बादशाह हैं, हम कुछ भी कर सकते हैं।