अब तो सुधर जाओ, कल मौका मिले न मिले

मेरी बात सुनने में अटपटी लगेगी,
लेकिन अगर आप शांति से समझेंगे
तो शायद समझ सकेंगे!

यह आपदा मूलतः आध्यात्मिक है।
हम अधर्म का जीवन जी रहे हैं,
हमने शास्त्रों को दरकिनार कर दिया है।
धर्म हमारे लिए खिलवाड़ बन गया है और
धर्म जीवन की कोई बाहरी या पारिधिक चीज़ नहीं होती,
धर्म जीवन का केंद्र होता है।

देखिए कोई भी आदमी हो,
सब किसी न किसी धर्म का पालन करते हैं।
मैं सनातन धर्म, ईसाइयत,
इस्लाम आदि की बात नहीं कर रहा हूँ।

मैं कह रहा हूँ-हर व्यक्ति के पास
अपना एक जीवन दर्शन होता ही होता है,
भले ही उसे खुद न पता हो
कि उसके पास एक जीवन दर्शन है।
पर दुनिया का हर बंदा किसी दर्शन,
किसी फिलॉसफी को लेकर चल रहा है।

अफ़सोस की बात यह है कि
ज़्यादातर लोगों के मन में जो दर्शन बैठा हुआ है,
जो फिलॉसफी बैठी हुई है,
जो सिद्धांत बैठा हुआ है,
जो गाइडिंग प्रिंसिपल है वह यह है- कि मौज करो!
कि जीवन का उच्चतम लक्ष्य है मौज करना!

यह इस वक्त हमारा धर्म है और
जब इतना भद्दा और सड़ा हुआ
हमारा धर्म होगा तो
अधर्म की सज़ा तो मिलेगी न?

पूरा वीडियो यहाँ देखें।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org