‘अप्प दीपो भव’ से क्या आशय है?

बुद्ध ने कई वचन कहे हैं लेकिन अहंकारियों को ये वचन बहुत भाता है क्योंकि गुरु के पास जाएँगे, तो वो साधना करवाएँगे, अहंकार को तोड़ेगा। इसलिए बुद्ध के वचन का दुरुपयोग करके अहंकार को बचाना चाहते हो।

यदि किसी गुरु को नहीं मानना, तो बुद्ध का वचन क्यों दोहरा रहे हो?
बुद्ध को तो तुमने गुरु बना ही लिया न!

वास्तव में बुद्ध के ये वचन साधना के अंतिम चरण के लिए हैं। पर पहले साधना शुरु तो करो। जब साधना की लंबी प्रकिया के बाद बाहरी गुरु, गुरुता तुम्हारे भीतर प्रकाशित कर देता है, तब तुम जान पाते हो कि इस सूक्ति का क्या अर्थ है। अब गुरु तुम्हारे भीतर दीप बनकर बैठ गया है, अब तुम्हारा अन्तर्जगत प्रकाशित हो गया है, अब तुम अपने प्रकाश में जिओ। तब हुआ “अप्प दीपो भव।” पर वो आखिरी बात हुई।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org