अपूर्ण से मुक्ति के साथ पूर्ण की संगति भी चाहिए
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केवल इतना कहोगे कि वासना से मुक्ति पानी है तो छटपटा जाओगे। वास्तव में वासना से मुक्ति मन को दिलानी है या और सटीक होकर कहें तो अहम् को। अहम् को मुक्ति भर ही नहीं चाहिए बल्कि पूर्णता भी चाहिए। इसको अपूर्णता से मुक्ति चाहिए। उसकी हालत समझो। वो अपूर्ण है, अधूरा है, खोखला है। इसलिए उसने वासना को पकड़ा। अब तुम कह रहे हो मुक्ति चाहिए। अब जो भी सड़ा-गला उसने पकड़ रखा है, वो पकड़ ही अपूर्णता के कारण है। तुम्हें सिर्फ़ मुक्ति ही नहीं चाहिए बल्कि तुम्हें पूर्णता भी चाहिए।
यदि सिर्फ़ इतना ही कहोगे कि जो है, उसे छोड़ दें तो अपने ऊपर दबाव तो बना लोगे पर वो सिर्फ़ नैतिक ही होगा। सामाजिक मर्यादा से हटकर तुम आध्यात्मिक मर्यादा में आ जाओगे। तुम कहोगे कि ये चीज़ें गंदी होती हैं। पहले तुम कहते थे कि जो काम कर रहे हैं, उससे परिवार और पड़ोस खफ़ा हो जाएगा। अब तुम कहोगे कि जो कर रहे हैं, उससे परमात्मा खफ़ा हो जाएगा। दोनों ही स्थितियों में तुम अपने ऊपर छोड़ने का दबाव बना रहे हो। लेकिन ये देख ही नहीं रहे कि उसको पकड़ा ही क्यों था? पकड़ा ही इसीलिए था क्योंकि अपूर्णता थी। यदि वो अपूर्णता कायम रही तो तुम कितनी भी बार छुड़वा लो विषय को अहम् से, वो कोई और विषय पकड़ लेगा।
मूल समस्या वो विषय नहीं है जिसे तुमने पकड़ लिया है, मूल समस्या है अपूर्णता। ऐसी बात है जैसे बच्चे को भोजन चाहिए, उसको मिला नहीं है। इसीलिए उसने मिट्टी खाना शुरु कर दिया। तुमने सारा दोष किस पर डाल दिया? बच्चे पर।
मिट्टी पर या वासना के विषय पर। तुम उसको कह रहे हो, गंदी चीज़, थू-थू-थू। तुमने जाकर उसको हाथ धुलवा दिया और बिस्तर पर लिटाकर चद्दर डाल दिया। उससे कहा कि सो जाओ। वो भूखा तो है ही। वो मिट्टी खाएगा।
अब वो दूसरे दरवाजे पर जाकर मिट्टी खाएगा। या कुछ और खाएगा। कूड़ा-कचरा जो भी पाएगा, वही चबाएगा। मिट्टी छुड़ाना बेशक ज़रूरी है। साथ ही साथ कुछ और भी ज़रूरी है। क्या है वो? जो उसे वास्तव में चाहिए।
दमन करना बुरा नहीं है पर मात्र दमन करना बुरा है। दमन करो, डांट लगाओ। छुड़ा दिया, बल प्रयोग कर दिया, दण्डित कर दिया। पर जब छुड़वा रहे हो एक हाथ से, तो दूसरे हाथ से उसको भोजन भी दो जिसकी वो माँग कर रहा है। दमन बुरा नहीं है पर यदि सिर्फ़ दमन ही किया तो वह बुरा है। बुरा इसीलिए है क्योंकि उपयोगी नहीं रहेगा। काम नहीं आएगा। मन को उनकी संगति भी तो दो जिनके करीब रहकर उसे पूर्णता का कुछ आभास भी हो। इसके अलावा कोई तरीका है नहीं।
कोई और तरीका क्यों नहीं है? ध्यान से समझिएगा।
आत्मा को पूर्णता देनी नहीं पड़ती। आत्मा तो पूर्ण है ही। ये जिसको हम पूर्णता देने की बात कर रहे हैं, वो अहम् है। अहम् ने सर्वप्रथम…