अपने विचारों को आज़ादी दो

हम सब ये मानना शुरू कर देते हैं कि विचार जैसे कोई बड़ा दुर्गुण है। विचार अपराध वगैरह नहीं है। विचार आपके लिए आवश्यक है। ज़्यादातर लोगों की समस्या ये नहीं है कि उनको निर्विचार उपलब्ध नहीं हो रहा, ज़्यादातर लोगों की समस्या ये है कि उनको विचार ही नहीं उपलब्ध हो रहा। सोच से मुक्ति बहुत दूर की कौड़ी है। अधिकांश लोग ठीक से सोच ही नहीं पाते। इसीलिए विचारक का दर्ज़ा आम आदमी से ऊपर का होता है।

हम सब की यही सोच होनी चाहिए कि हम बेहतर सोचे। नया सोचो, ताज़ा सोचो। दोहराते मत रहो। अपने विचार को पंख दो।

मृत, सड़े हुए विचार सैंकड़ो सालो तक चलते रहते हैं। ताज़ी और जीवंत सोच अपना काम खत्म करके विलुप्त हो जाती है। ये सही सोच की निशानी है। माने विचार अगर सही होगा तो आपको निर्विचार के किनारे तक ले आएगा।

ज़्यादातर हमारे विचार जड़ पत्थर जैसे है, वो शताब्दियों से गड़े हुए हैं, वो हट नहीं रहे। न उनका कोई विकास हो सकता है और न अब उनकी मृत्यु हो सकती है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org