अपने भीतर बैठे दुश्मन को कब पहचानोगे?

जब तुम कहते हो सब आदमी एक बराबर हैं तो यह कह कर के तुम लोगों की मदद नहीं कर रहे बल्कि ये कह कर तुम गिरे हुए आदमी को न उठने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हो। तुम उससे कह रहे हो कि तुम गिरे हुए हो तो भी क्या फर्क पड़ता है तुम अभी भी बुद्ध के बराबर हो, तुम और बुद्ध एक समान हो, सब इंसान बराबर हैं एक दूसरे के।

अपनी खोट नहीं देखनी है क्योंकि अपनी खोट देखी तो अपनी निचाई माननी पड़ेगी। जिस आदमी को अपनी खोट नहीं देखनी उसे दुनिया में सर्वत्र बस साजिश नज़र आती है। वो कहेगा “वो साजिश कर रहा है मेरे खिलाफ, वह गलत है, उसने ऐसा कर दिया, उसने वैसा कर दिया, फलानी ताकतें, फलाने वर्ग के लोग, पुरुष वर्ग है वह स्त्री का शोषण कर रहा है। अब पुरुषों में भी वर्ग निकल आए हैं जो कह रहे हैं नहीं! स्त्रियाँ पलट के हमारा शोषण कर रही हैं, कानून स्त्रियों के साथ है , वगैरह-वगैरह।”

ये मत मानना बस कि इंसान का ‘मन’ ऐसा है जो उसका शोषण कर रहा है। यह मत मानना बस कि हर आदमी को अपने भीतर झांकने की ज़रूरत है, अपना दुश्मन उसे वहीं नज़र आ जाएगा। पर अपने दुश्मन के साथ तो हमने अपनी पहचान जोड़ ली है और तकलीफ़ में हम खूब हैं। तो जो हमारा असली दुश्मन है भीतर उसका नाम हम ले नहीं सकते। तो हमारी मजबूरी हो जाती है कि हम दुनिया भर में नकली दुश्मन ढूंढते फिरें।

हम कहते हैं वह फलाना वर्ग, फलानी क्लास हमारी दुश्मन है, फलानी ताकतें हमारी दुश्मन हैं, फलानी तरह का आर्थिक दर्शन हमारा दुश्मन है, पूंजीवाद हमारा दुश्मन है, जातिवाद हमारा दुश्मन है, नाज़ीवाद हमारा दुश्मन है, फासीवाद हमारा दुश्मन है, तमाम तरीके के तुम दुश्मन खोज लो।

मैं नहीं कह रहा हूँ कि नाज़ीवाद, फासीवाद, पूंजीवाद ये दूध के धुले हैं, उनमें हैं ही लाख दुर्गुण। लेकिन उनके दुर्गुणों को गिनाने से आदमी के मन का अंधेरा दूर थोड़े ही हो जाएगा?

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org