अपने दुश्मन आप!

अपने दुश्मन आप

आचार्य प्रशांत: हमने कहा था कि माइंड इज़ ब्रेन प्लस इंटैलिजैन्स (मन मस्तिष्क और बोध का मेल है)। जब तक ये ब्रेन (मस्तिष्क) परिपक्व नहीं होगा, एक मैच्योरिटी (परिपक्वता) को नहीं पहुँचेगा, इंटैलिजैन्स की अभिव्यक्ति नहीं हो सकती। यही कारण है कि एक छोटा बच्चा विवेकशील नहीं हो सकता, इंटैलिजैन्ट नहीं हो सकता क्योंकि उसके पास पर्याप्त ग्रे मैटर ही नहीं है। और यही कारण है कि क्यों जानवर एक कंडीशंड मशीन की तरह ही काम करेंगे। ये मष्तिष्क (मस्तिष्क की ओर इशारा करते हुए ) सिर्फ भौतिक पदार्थ है। और कोई बात ही नहीं है। यही कारण है कि बुद्धिमान से बुद्धिमान आदमी भी मूर्खों जैसी हरकतें करने लगेगा अगर उसके सिर पर एक डंडा मार दिया जाए। तुम यहाँ बैठे हुए हो, तुम्हारे मस्तिष्क में दो इलेक्ट्रोड लगा दी जाएँ, फिर देखो, ऐसे नाच नाचोगे कि बन्दर भी शर्मा जाएँ। बस दो इलेक्ट्रोड लगाने की देर है, सही जगह पर। ब्रेन की बात है। जानवरों का ब्रेन नहीं विकसित होता। तुम सौभाग्यशाली हो कि तुम्हें ये मिला है पर तुम उतने ही बड़े दुर्भाग्यशाली भी हो कि तुम इसका इस्तेमाल नहीं कर पा रहे। जितना बड़ा सौभाग्य है उतना ही बड़ा तुम्हारा दुर्भाग्य भी है। तुम्हें ये मिला, ये एक बड़ी विलक्षण बात है। पर तुम जानते ही नहीं कि इसका करना क्या है। इससे बड़ा दुर्भाग्य नहीं हो सकता।

प्रश्नकर्ता: सर फिर तरीका क्या है, इस इंटैलिजैन्स को बढ़ाने का? विधि क्या है माइंड को विकसित करने की?

आचार्य: कुछ ख़ास करना नहीं है। बस जो कुछ इसकी अभिव्यक्ति को रोकता है, उससे दूर रहो। हमने कहा था कि इंटैलिजैन्स ध्यान के माहौल में ही प्रतिफलित होती है। ध्यान के कुछ दुश्मन होते…

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org