अपने गूंगे-बहरे भाई को मारना सेब खाने जैसा है (गज़ब तर्क!)

आचार्य प्रशांत: हमारा एक वीडियो है अंग्रेजी में जिसका शीर्षक है इफ किलिंग इस बैड व्हाई डस कार्निवोरस एसिस्ट? (यदि मारना बूरा है तो प्रकृति में माँसाहारी जानवर क्यों हैं?)

तो इसपर प्रश्नकर्ता ने सवाल भेजा है। कह रहे हैं कि, “मानों अगर आपके भाई को कोई मार दे जिन्हें कोई अपंगता थी जैसे गूंगा, बहरा होना या अंधा होना वगैरह तो क्या आप कहोगे कि ऐसे हत्यारे की सज़ा कम कर दी जाए या ऐसा होगा कि ऐसों को और ज़्यादा सजा दी जाए?”

तो ये जो इनका तर्क है ये कहना चाहते हैं कि जिनकी इन्द्रियाँ कम होती हैं उनको मारना तो और भी अमानवीय बात हो जाती है न। माने कि आप किसी गूंगे-बहरे लाचार आदमी को मार दो तो ये तो और भी अमानवीय बात है। तो ऐसे में और बड़ी सज़ा होनी चाहिए। तो ये कह रहे हैं कि, “आप ये क्यों बोलते हैं कि जो पेड़-पोधे हैं इनको खाना फिर भी ठीक है क्योंकि इनमें चेतना का स्तर कम है और जानवरों को मारना अपेक्षतया और ज़्यादा गलत है क्योंकि उनकी चेतना का स्तर ज़्यादा है?”

आमतौर पर शाकाहार के पक्ष में ये तर्क दिया जाता है कि जो शाक है, जो पौधे हैं, जो सब्जियाँ हैं इनके पास इन्द्रियाँ नहीं होती तो इनको खाया जा सकता है या इनको खाना कम बुरी बात है अपेक्षतया जानवरों को खाने से क्योंकि जानवरों के पास इन्द्रियाँ होती हैं। तो उस तर्क को काटने के लिए श्रीमान ज़ाकिर नायक हैं उन्होंने ये तर्क दिया था कि अगर आपका एक भाई हो जिसकी इन्द्रियाँ कम हों, माने गूंगा-बहरा हो तो उसको मारना तो और ज़्यादा बुरी बात हुई न। तो इस तरीके से पेड़-पौधों को खाना तो और ज़्यादा बुरी बात हुई क्योंकि उनकी भी इन्द्रियाँ नहीं हैं।

अब ये बहुत ही, क्या बोलूँ, मूर्खता भरा तर्क है। इसे तर्क बोलना भी नहीं चाहिए, तर्कशास्त्र अपमान मानेगा अगर इस तरह की बात को तर्क बोल दिया गया तो।

भाई जो गूंगा-बहरा व्यक्ति है उसकी स्थिति में ये शामिल है कि उसमें सुनने की, देखने की, बोलने की संभावना थी। वो संभावना साकार नहीं हो पाई इसीलिए उस व्यक्ति को सहारा चाहिए और उसको सहारा दिया भी जाएगा क्योंकि संभावना है उसमें। उसकी चेतना में संभावना है और बात देखो इंद्रियों की कम होती है चेतना की ज़्यादा होती है।

अगर इंद्रियाँ आपकी बनी भी रहें आँख भी है, कान भी है सब कुछ है और दिमाग ठप्प पड़ जाए तो आप किसी काम के बचे? आँखें देख रही हैं, कान सुन रहे हैं, ज़बान उपलब्ध है बोलने के लिए लेकिन मस्तिष्क काम नहीं कर रहा, बुद्धि एकदम शून्य हो गई है तो आप किस लायक बचे हो?

तो बात इंद्रियों की नहीं होती है, बात चेतना की होती है। अगर इंद्रियों के भी तल पर बात करो तो कोई मनुष्य है जो नहीं…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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