अपने करे संसार तो मिला नहीं, परमात्मा क्या मिलेगा

आचार्य प्रशांत: आदमी का मन ऐसा है कि वो हमेशा कार्य-कारण में जीना चाहता है। अपने से बाहर की किसी सत्ता को किसी हाल में स्वीकार करना नहीं है। वो यह कहता है कि संसार में जो हो रहा है उसके कारण हैं ही, मुझे जो मिला या नहीं मिला, मैं जो हुआ या नहीं हुआ उसके तो कारण हैं ही — परमात्मा भी मिलेगा या नहीं मिलेगा उसका कारण मैं ही रहूँ। तो कहता है कि मोक्ष भी यदि मिले मुझे तो मेरे श्रम से। कारण स्पष्ट रहे, मज़ेदार बात है।

मुक्ति मिली तो कैसे मिली? “मेहनत कर-कर के, मेरे किए।” ऐसी मुक्ति में और ज़्यादा गाढ़ा क्या हो गया? मेरा होना। तो इसी कारण गुरुओं को कहना पड़ा है कि बेटा मुक्ति भी तुम्हें तुम्हारे करे नहीं मिलेगी, मुक्ति भी उस को मिलती है जिसको वह चुनता है मुक्त करने के लिए यह इसीलिए स्पष्टतया कहा जा रहा है ताकि किसी को यह अहंकार न हो जाए कि मेरी साधना से, मेरे ज्ञान से, मेरी भक्ति से मुझे मुक्ति मिल गई। क्योंकि यह तो परम अहंकार हो जाएगा, “मैं कर्ता था। लोग तो कर-कर के छोटी-मोटी चीजों को पाते हैं — किसी ने गाड़ी पा ली, किसी ने पैसे पा लिए, मैंने तो कर कर के जो सबसे बड़ी चीज पाई जा सकती है वो पा लिया — मैंने परम ही पा लिया।” यह गहरा से गहरा अहंकार हो जाएगा। इसी कारण यह स्पष्ट करना पड़ता है कि तुम्हारे करे नहीं मिलेगा, उसको मिलेगा जिसको वह खुद चुनेगा।

अब तुम बैठे-बैठे तुक्के लगाते रहो कि वह किस को चुनेगा। यह तुम्हारे निर्णय के क्षेत्र से ही बाहर है कि वह किस को चुनता है और किसको नहीं चुनता है। तुम प्रार्थना भर कर सकते हो कि प्रभु! मुझे ही चुन लेना…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org