अपने अहंकार को सत्य का भोजन बना दो

आचार्य प्रशांत: "इस प्रकार क्रोध में भरे हुए मातृगणों को नाना प्रकार के उपायों से बड़े-बड़े असुरों का मर्दन करते देख दैत्य सैनिक भाग खड़े हुए। मातृगणों से पीड़ित दैत्यों को युद्ध से भागते देख रक्तबीज नामक महादैत्य क्रोध में भरकर युद्ध करने के लिए आया। उसके शरीर से जब रक्त की बूँद पृथ्वी पर गिरती, तब उसी के समान शक्तिशाली एक दूसरा महादैत्य पैदा हो जाता।”

“महासुर रक्तबीज हाथ में गदा लेकर इन्द्र शक्ति के साथ युद्ध करने लगा। तब ऐंद्री ने अपने वज्र से रक्तबीज को मारा। वज्र से घायल होने पर उसके शरीर से बहुत-सा रक्त चूने लगा और उससे उसी के समान रूप तथा पराक्रम वाले योद्धा उत्पन्न होने लगे। उसके शरीर से रक्त की जितनी बूँदें गिरीं, उतने ही पुरुष उत्पन्न होने गए। वे सब रक्तबीज के समान ही वीर्यवान, बलवान तथा पराक्रमी थे। वे रक्त से उत्पन्न होने वाले पुरुष भी अत्यंत भयंकर अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार करते हुए वहाँ मातृगणों के साथ घोर युद्ध करने लगे।”

“पुनः वज्र के प्रहार से जब उसका मस्तक घायल हुआ, तब रक्त बहने लगा और उससे हजारों पुरुष उत्पन्न हो गए। वैष्णवी ने युद्ध में रक्तबीज पर चक्र का प्रहार किया तथा ऐंद्री ने उस दैत्य सेनापति को गदा से चोट पहुँचाई।”

“वैष्णवी के चक्र से घायल होने पर उसके शरीर से जो रक्त बहा और उससे जो उसी के बराबर आकार वाले सहस्त्रों महादैत्य प्रकट हुए, उनके द्वारा सम्पूर्ण जगत व्याप्त हो गया। कौमारी ने शक्ति से, वराही ने खड्ग से और माहेश्वरी ने त्रिशूल से महादैत्य रक्तबीज को घायल किया। क्रोध में भरे हुए उस महादैत्य रक्तबीज ने भी गदा से सभी मातृ-शक्तियों पर पृथक-पृथक प्रहार किया।”

“शक्ति और शूल आदि से अनेक बार घायल होने पर जो उसके शरीर से रक्त की धारा पृथ्वी पर गिरी, उससे भी निश्चय ही सैंकड़ों असुर उत्पन्न हुए। इस प्रकार उस महादैत्य के रक्त से प्रकट हुए असुरों द्वारा सम्पूर्ण जगत व्याप्त हो गया। इससे उन देवताओं को बड़ा भय हुआ।”

“देवताओं को उदास देख चंडिका ने काली से शीघ्रतापूर्वक कहा – ‘चामुंडे! तुम अपना मुख और भी फैलाओ। तथा मेरे शस्त्रपात से गिरने वाले रक्तबिन्दुओं और उनसे उत्पन्न होने वाले महादैत्यों को तुम अपने इस उतावले मुख से खा जाओ। इस प्रकार रक्त से उत्पन्न होने वाले महादैत्यों का भक्षण करती हुई तुम रण में विचरती रहो। ऐसा करने से उस दैत्य का सारा रक्त क्षीण हो जाने पर वह स्वयं भी नष्ट हो जाएगा। उन भयंकर दैत्यों को जब तुम खा जाओगी, तब दूसरे नए दैत्य उत्पन्न नहीं हो सकेंगें’।”

“काली से यों कहकर चंडिका देवी ने शूल से रक्तबीज को मारा। और काली ने अपने मुख में उसका रक्त ले लिया। तब उसने वहाँ चंडिका पर गदा से प्रहार किया, किन्तु उस गदापात ने देवी को तनिक भी वेदना नहीं पहुँचाई। रक्तबीज के घायल शरीर से बहुत-सा रक्त गिरा। किन्तु ज्यों ही वह गिरा, त्यों ही चामुंडा ने उसे अपने मुख में ले लिया। रक्त गिरने से…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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