अपनी सीमाओं का ज्ञान
आचार्य प्रशांत: आप का विचार बहुत पैना हो सकता है। बहुत अभ्यास करा हो आपने, बहुत ज्ञान अर्जित किया हो, बुद्धि पर बहुत ज़ोर हो आपका, लेकिन फ़िर भी विचार आप भौतिक तल पर ही करोगे जब भी किया। विचार को कभी भी ये ग़ुमान, ये गर्व नहीं होना चाहिए कि वो सत्य तक पहुँच गया।
सोच सच नहीं होती। सोच सच तक पहुँच भी नहीं सकती। सोच सदा भौतिक विषयों के बारे में होती है और यही उसका सम्यक विषय और सम्यक उपयोग है कि भौतिक जगत के बारे में, भौतिक विषयों के बारे में आपको कोई अंधविश्वास भ्रांति, ग़लतफ़हमी ना रह जाए।
सोच का काम सत्य के बारे में तहक़ीक़ात करना नहीं है, सोच का काम असत्य के बारे में तहक़ीक़ात करना अन्वेषण करना है। परमात्मा, मुक्ति आदि के बारे में विचार करना पूरी तरह व्यर्थ है।
अंतिम क्या है या प्रथम क्या है? आधारभूत क्या है या आकाशीय क्या है? - इन विषयों पर बस मौन हो जाना चाहिए क्योंकि ये चिंतन के विषय हैं ही नहीं। पृथ्वी से लेकर आकाश के मध्य जो कुछ है उस पर चिंतन कर लीजिए। पर पृथ्वी के नीचे क्या है और आकाश के ऊपर क्या है, इस पर विचार करके कुछ नहीं पाएँगे। ये बात किसको संबोधित करके कही जा रही है? अहम् को। क्यों कही जा रही है? क्योंकि अहम् को यही तो आशा है कि वो जैसा है वैसे ही रहते हुए या थोड़ा बेहतर होकर, संशोधित होकर वो सच तक पहुँच जाएगा।
चलो भाई! सच ऊँची बात है तो उसको पाने के लिए अहम् रूप-रंग और कपड़े भी बदलने को तैयार हो जाता है। "बताओ नया आवरण कौन सा पहनना है? नई भाषा कौन सी बोलनी है? बताओ कौन सी नई विचारधारा पकड़नी है? बताओ किन-किन तरीकों से बदलना है? हम बदलने को तैयार हैं। लेकिन हम शर्त यही रख रहे हैं कि हम बने रहेगें। हम बदलने को तैयार हैं बशर्ते हमें बने रहने की सहूलियत हो। हम बने रहेंगे और हमारी उम्मीद यही…