अपनी योग्यता जाननी हो तो अपनी हस्ती की परीक्षा लो

आध्यात्मिक पथ पर जो आदमी लगा है वो बड़ी से बड़ी भूल ये कर सकता है कि वो कहे कि मैं तो आम लोगों जैसा ही दिखूँगा क्योंकि आम लोगों जैसा दिखने में, भीड़ का हिस्सा होने में सुरक्षा लगती है। “मैं ये नहीं दिखाऊँगा कि मैं अलग हो गया हूँ। मैं दो नावों पर एक-एक पाँव रखकर यात्रा करूँगा। मैं पचास-पचास खेलूँगा। मैं जब बाज़ार में रहूँगा तो मैं ऐसे कपड़े पहन लूँगा कि लगे कि मैं बिलकुल बाज़ार का ही हूँ। मैं दफ़्तर में रहूँगा तो मैं बिलकुल दफ़्तर जैसा ही सब धारण कर लूँगा। और मैं जब अध्यात्म में आऊँगा तो वहाँ मैं कुछ सफ़ेद इत्यादि धारण कर लूँगा”। नहीं, ये बड़ी से बड़ी भूल है जो तुम अध्यात्म में कर सकते हो और इस भूल का आप बहुत दंड भी भुगतते हैं।

दंड मैं बता देता हूँ कैसे भुगतते हैं। समझिएगा। यहाँ आप वैसे हैं जैसा आपको लगता है कि इस जगह की माँग है, है न? आप यहाँ से बाहर निकलेंगे, दफ़्तर चले जाएँगे या घर चले जाएँगे, वहाँ आप वैसे हो जाते हैं जैसा आपको लगता है कि वहाँ की माँग है। अब थोड़ा सा उस बेचारे के मन में जाइए जो आपसे आपके घर में या दफ़्तर में मिल रहा है। मान लीजिए आप यहाँ आए हैं और आपने अपनी पत्नी को, या अपने भाई, या अपने माँ-बाप को इस विषय में ज़्यादा सूचना इत्यादि नहीं दी है, बताया नहीं है और दफ़्तर में आपने अपने सह-कर्मियों को, अपने वरिष्ठों को ज़्यादा कुछ बताया नहीं है।

आप जब घर जाओगे तो घर में आप कैसे हो जा रहे हो? बिलकुल घरवालों जैसे। तो घरवालों बेचारों को क्या लग रहा है? कि आप तो उन्हीं के जैसे हो। अब बात ये है कि अंदर ही अंदर आप थोड़े इधर के…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org