अपनी बात तो तब करें जब कोई दूसरा नज़र आये
येन दृष्टम परं ब्रह्म सोऽहं ब्रह्मेति चिन्तयेत्।
किं चिन्तयति निश्चिन्तो यो न पश्यति।।
~ अष्टावक्र गीता, अध्याय १८, श्लोक १६
(जिसने अपने से भिन्न परब्रह्म को देखा हो, वह चिन्तन किया करे कि वह है
ब्रह्म पर जिसे कुछ दूसरा दिखाई नहीं देता, वह निश्चिन्त क्या विचार करे)