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अपनी प्रतिभा का कैसे पता करूँ?

एक ख़ास किस्म का संगीत अगर तुमको आता है, अगर तुम्हें उसमें पारंगत हासिल है, तो तुम एक देश में बड़े संगीतज्ञ बन जाओगे, दूसरे देश में जहाँ पर उस तरह के संगीत को कोई स्वीकृति नहीं है, वहाँ पर तुममें कोई गुण नहीं देखा जायेगा कि तुम्हें कुछ आता है।

तो प्रतिभा तो समाज की एक धारणा है। समाज सिर्फ उन योग्यताओं को प्रतिभा का नाम देता है जो उसके काम की हों, जो कुछ समाज के काम का है, समाज कह देगा यह प्रतिभा है, और यह प्रतिभाशाली आदमी है; वर्ना तो तुम जैसे हो, जो भी हो और जो भी कर रहे हो, अगर उसमें पूर्णतया डूब के करते हो तो वही प्रतिभा है, वही टैलेंट है।

तुम इस चक्कर में तो पड़ो ही मत कि क्या प्रतिभा है और क्या प्रतिभा नहीं है। समाज तो कुछ गिनी-चुनी चीज़ों को ही प्रतिभा का नाम देगा, पर तुम उस आधार पर अपनी ज़िन्दगी थोड़ी बिता सकते हो। तुमको तो जो भी रुचता है, जिस में भी तुमको रस आता है, तुम उसी में डूब जाओ और पूरी तरह डूब जाओ, कोई फर्क नहीं पड़ता कोई तुम्हें प्रतिभाशाली कहता या प्रतिभाहीन।

तो अगर तुम्हारी प्रतिभा सिर्फ बांसुरी बजाने कि है, और दिन में तुम दो घंटे बजाते हो तो बाकी बाईस घंटे तो तुम प्रतिभाहीन हो गए न?

चौबीसों घंटे जो करो उसको पूर्णता के साथ करो, पूरे ध्यान के साथ जैसे इसके अलावा हम कुछ हैं ही नहीं, यही है सिर्फ, यही है एक मात्र प्रतिभा है। जीवन को ध्यान में जीना, सिर्फ वो प्रतिभा है और कुछ नहीं, बाकी सब तो लेबल्स हैं, ठप्पे, कि तुमने ठप्पा दे दिया कि, ‘हाँ भई! यह टैलेंट है’, अगर वास्तव में तुममें प्रतिभा है तो वो ध्यान की ही है।

पूरा वीडियो यहाँ देखें।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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