अपनी ज़िंदगी की असलियत जाननी है?

अपनी ज़िंदगी की असलियत जाननी है?

प्रश्नकर्ता: आप कहते हैं कि जीवन में मुक्ति, आनंद और चैन आए उससे पहले बंधनों का, दुःख और बेचैनी का अनुभव अनिवार्य है, पर मेरे जीवन में तो कोई ख़ास दुःख या बेचैनी दिखती नहीं मुझे। तो मैं बेईमान हूँ क्या या सचमुच दुःख है ही नहीं?

आचार्य प्रशांत: समझते हैं। देखो बहुत बड़ी तादाद होती है ऐसे लोगों की जो अपनी ज़िंदगी से लगभग संतुष्ट होते हैं। ‘लगभग’ शब्द पर ग़ौर करना, उन्हें अपनी ज़िंदगी से शिकायतें तो रहती हैं।…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org