अपनी ज़िंदगी की असलियत जाननी है?
बहुत बड़ी तादात होती है ऐसे लोगों की जो अपनी ज़िंदगी से लगभग संतुष्ट होते हैं। उन्हें अपनी ज़िंदगी से शिकायतें तो रहती है, लेकिन उनकी शिकायतें मद्धम होती है, तो वो चिढ़ते रहते हैं और उनकी चिढ़ कभी भी क्रांति या विद्रोह नहीं बनती। अधिकांश लोग अपनी ज़िंदगी से थोड़ा बहुत गिला-शिकवा रखते हुए भी लगभग संतुष्ट होते हैं। वो बदलना तो चाहेंगे लेकिन ज़िंदगी को बदलने के लिए जो श्रम लगना है आप जैसे ही उसकी बात करेंगे वैसे ही वो अपने कदम पीछे खीच लेंगे…