अनुशासन का क्या महत्व है?

प्रश्न: सर, जीवन में अनुशासन का क्या महत्व है?

आचार्य प्रशांत: कोई भी महत्व नहीं है। बिल्कुल भी महत्व नहीं है। तुम लोग आज सुबह भीतर जाकर अपने प्रशन लिख रहे थे, अपने मन को जान रहे थे की क्या है जो चल रहा है। क्या तुमने गौर किया था कि यहाँ पर कितना सुंदर मौन आ गया था? थोड़ी सी भी आवाज़ नहीं हो रही थी और वो किसी अनुशासन का नतीज़ा नहीं थी। यह तय करना कि हमें नहीं बोलना चाहिए ये अनुशासन की बात है। और तुमने तब न तय किया था कि हमें नहीं बोलना, न तुम्हें डराया, धमकाया गया था, न तुम्हें कोई प्रलोभन दिया गया था। फिर भी एक सुंदर, घना मौन था जो की आता भी नहीं है। कितना भी अनुशासित होने की कोशिश कर लो इतना मौन कभी नहीं आता।

अनुशासन का अर्थ है आचरण को बाहर से थोपना। जिस प्रकार का आचरण उचित है, उसको अपने ऊपर लाद लेना। आचरण तुम्हारी समझ की छाया की तरह होना चाहिए। जब भी कोई कर्म तुम्हारी समझ के फल स्वरूप होता है, तब उसमें एक गहराई होती है, एक असलियत होती है। तब तुम्हें अनुशासन की ज़रुरत नहीं होती, समझ काफ़ी होती है और समझ ही काफ़ी होनी चाहिए। अनुशासन का कोई महत्व नहीं है। तुम्हें अक्सर अनुशासन इसलिए चाहिए होता है क्योंकि तुम समझते नहीं हो। जो समझता हो उसको अनुशासित किया भी नहीं जा सकता। वो वही करेगा जो उसकी समझ उसे बताएगी। तुम्हें अनुशासित किया जा सकता है और तुम्हें ज़रूरत भी है अनुशासन की। तुम्हें आचरणबद्ध नियमों की ज़रूरत है भी क्योंकि तुम्हारे जीवन में अपना कुछ नहीं है। कैसे चलना है वो कोई और बताता है, और तुम वैसे ही चलते हो कि कहीं चाल टेढ़ी न हो जाए। तो किसी को तुम्हें अनुशासित करना पड़ता है।…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org