अनुभव में गहराई

आचार्य प्रशांत: ओशो के शब्द हैं –

“मेरे प्रिय प्रेम,

नहीं, प्यासे नहीं रहोगे। देर है, अंधेर नहीं। और, देर भी है तो स्वयं ही के कारण। प्यास पकेगी, तभी तो कुछ होगा। फिर, कच्ची प्यास को छेड़ना उचित भी नहीं है। पकने दो प्यास को, गहन होने दो, तीव्र होने दो। झेलो पकने की पीड़ा। झेलनी ही पड़ती है, क्योंकि निर्मूल्य कुछ भी नहीं है। मूल्य चुकाओ, गुज़रो जीवन से, दुःख से, संताप से, नरकों से, स्वर्गों की आशा में। क्योंकि किसी और प्रकार के भवन पृथ्वी पर बनते ही नहीं हैं। और हवा के झोंके जब उन्हें गिरा दें, तो रोओ। टूटो और स्वयं भी उनके साथ ही गिरो। तैराओ नावें कागज़ों की महासागरों में, क्योंकि आदमी किसी और भांति की नावें बनाने में समर्थ ही नहीं है। और फिर लहरों के थपेड़े उन्हें डुबा दें, तो पछताओ जैसे कि सुखद स्वप्न टूट जाए, तो कोई भी पछताता है। और ऐसे ही यात्रा होगी। और ऐसे ही अनुभव शिक्षा देंगे। और ऐसे ही ज्ञान जगेगा और पकेगी प्यास। और तुम स्वयं को दांव पर लगा उसे खूब खोजोगे, जोकि समस्त प्यासों के पार ले जाता है। वो तो निकट ही है, बस तुम्हारी ही स्वयं को दांव पर लगाने की देर है।”

प्रश्नकर्ता:

१. ये जितनी बातें ओशो कह रहे हैं, वो सब तो द्वैत के आयाम में आती हैं, तो उनमें फँस कर, या उनसे गुज़र कर क्या जाना जा सकता है?

२. अनुभव से क्या अर्थ है, अनुभव शिक्षा कैसे देंगे?

३. दांव पर लगाने की क्या बात है?

आचार्य प्रशांत: आखिरी पंक्ति में ओशो कहते हैं, “जो कि समस्त प्यासों के पार ले जाता…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org